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Thursday, October 29, 2009

वर्तमान का विखंडन नहीं किया जा सकता.

वर्तमान का तात्पर्य है - होना, रहना। होने-रहने में क्रियाशीलता सदा-सदा से स्थिति-गति रूप में, फल-परिणाम रूप में, वर्तता ही रहता है, अभी भी वर्त रहा है, आगे भी वर्तता रहेगा। इस प्रकार वर्तमान कहीं भी खंडित होना, या खंडित रहना - किसी भी विधि से सम्भव नहीं है।

"ऋणात्मक विधि" से वस्तु के अभावित होने की बात किया जाता है। ऐसे प्रयोगों को सर्वाधिक रूप में गणितीय विधि से संपन्न करना देखने को मिल रहा है। ऋणात्मक विधि से वस्तु स्थानांतरित होती है। कोई एक देश-काल में वस्तु जो थी, वह दूसरे देश-काल में चली गयी। उदाहरण रूप में : "१० - १० = ० " - ऐसा गणित में लिखा करते हैं। इससे मानव को संदेश रूप में जो स्वीकारने को सूत्र मिलता है - "वस्तु नहीं रहा!" इस तरह गणितीय विधि जो सच्चाई को उद्घाटित करने गया था, झूठाई में उलझाते चले गए।

"विखंडन विधि" से भी वस्तु और क्रिया के समाप्त होने की कल्पना दी जाती है। विखंडन क्रम के लिए चक्कू, छुरी, तलवार, पिसाई, घुटाई का प्रयोग किया जाता है। इसके बाद संख्यात्मक गणित का सहारा लिया जाता है। इस क्रम में - एक वस्तु को हज़ार टुकडा किया, पुनः उसमें से एक टुकड़े को हज़ार टुकडा किया, इस प्रकार करते-करते टुकडा विधि से एक टुकडा बचा ही रहता है। जिसको गणितीय विधि में "नगण्य" मान लेते हैं, अथवा और टुकडा करने में दिलचस्पी ख़त्म हो जाता है, अथवा और टुकडा करने का आवश्यकता नहीं रहता। ऐसी थकी हुई मानसिकता की स्थिति में "वस्तु समाप्त हो गयी" - ऐसा गणितीय विधि से स्वीकार लेते हैं। जबकि हर विखंडन के पहले "एक" होना स्वीकारे ही रहते हैं। उसको हज़ार भाग में विभाजित करने के बाद एक भाग को पुनः विभाजित करना स्वीकारते हैं। शेष ९९९ भाग यथावत रखा ही रहता है। इस क्रम को जोड़ने पर पता लगता है मानव भ्रमित करने को ही विखंडन-विधि गणित को अपनाए। विखंडन-विधि गणित मनुष्य को कुछ भी सकारात्मक वस्तु, उपलब्धि, घटना, अथवा ज्ञान देने में असमर्थ रहा। जबकि गणितीय भाषा को सर्वाधिक सत्य मान करके विज्ञान-संसार उदय हुआ था!

"दबाव विधि" से भी वस्तु और क्रिया के समाप्त होने की कल्पना दी जाती है। इसमें "यांत्रिक दबाव" और "ऊष्मा दबाव" के भेदों से प्रयोग संपन्न हुए। इन प्रयोगों में बहुत प्रकार के रसायन द्रव्यों के संयोग में ऊष्मा-दबाव पैदा करते हुए देखा गया। एक पटाखा से लेकर बन्दूक तक, बन्दूक से लेकर तोप तक, तोप से लेकर आण्विक-बम्ब तक विध्वंस क्रियाकलापों को करता हुआ देखा गया। इन सभी क्रम में ऊष्मा विधि से दबाव होना, उस दबाव से वातावरण में ध्वनि से लेकर कुछ न कुछ उपद्रव मचाने के रूप में निरीक्षण-परीक्षण करके निर्णय लेते चले गए।

इन सभी विधियों में सर्वाधिक हानि-प्रद ऊष्मा-तंत्र प्रदूषण विकीरणीय धातुओं के परिष्करण पूर्वक मध्यांश का विखंडन पूर्वक हुआ। यह सब जो मानव जाति के लिए नकारात्मक है - उसका गुण-गायन आए दिन प्रचार-माध्यमो द्वारा उछाला जाता है। इस प्रकार विज्ञानं विधा में जो सर्वाधिक सम्मान पाते हैं - वह सर्वाधिक विध्वंस-कारी, मानव-विरोधी, और नियति-विरोधी है। यह सब नाश और अड़चन का कारण बन चुकी है। सामरिक तंत्रों में, सामरिक विचारों में, सामरिक प्रयोगों में संलग्न विज्ञानियों को सर्वाधिक उपयोगी माना जाता है।

हर ईष्ट-अनिष्ट घटनाएं वर्तमान में ही घटित होती हैं। इसमें से ईष्ट घटनाएं मानव को स्वीकार होती हैं, अनिष्ट घटनाएं मानव को स्वीकार नहीं होती। हम अपराध के लिए भले ही भय-प्रलोभन वश सहमत हो गए हों, पर आज की स्थिति में मानव-कुल में जीवित सर्वाधिक लोगों में अपराध अस्वीकृत है। इसीलिए विकल्पात्मक विधि को सोचने की आवश्यकता है।

अपराध-मुक्ति विकल्पात्मक विधि से ही सम्भव है, परम्परा-गत विधि से नहीं। भटकाव से मुक्ति पाने के लिए सह-अस्तित्ववादी विकल्पात्मक विचार, शास्त्र, शिक्षा, व्यवस्था के प्रति पारंगत होना आवश्यक हो गया है। यह "सर्वतोमुखी समाधान" एक सहज-मार्ग होना स्पष्ट हो चुका है।

बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००६)

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