सर्वेक्षण में देखा गया कि जो प्रौढ़ अवस्था में आ गए हैं उनमे अध्ययन के लिए अड़चन ज्यादा है - क्योंकि वे अपने जीने का डिजाईन में एक तरीके से ढल चुके हैं, उसमे परिवर्तन करने में उनको तकलीफ होती है. युवावस्था में कम अड़चन है, क्योंकि उनको अपने जीने का डिजाईन बनाना अभी शेष है. शिशु अवस्था से शुरू करें तो अड़चन का नाम ही नहीं है. वहां सीधे दवाई पहुँचता है! आज्ञापालन, अनुकरण और सहयोग ये सब बच्चों में होता है. इन तीनो के साथ हर बालक जन्म से ही न्याय का याचक, सही कार्य व्यवहार करने का इच्छुक, और सत्य वक्ता होता है. उस स्थिति में कोई भी सही बात उनको देते हैं तो वे तुरंत उसको स्वीकार करते हैं.
स्मरण में पहुंचाने के लिए सबसे उपयुक्त कौमार्य अवस्था है. वैदिक परंपरा में भी श्रुति को स्मरण में पहुंचाने के लिए इसी अवस्था को पहचाना है. इस आयु में ग्राह्य क्षमता सबसे ज्यादा है. अभी तक की शिक्षा में क्या ग्रहण करना है, यह तय नहीं हो पाया. अभी की शिक्षा ने बच्चों को सुविधा-संग्रह लक्ष्य के लिए नौकरी और व्यापार के लिए जोड़ दिया. उससे अपराध प्रवृत्ति निष्पन्न हुई, न कि समाधान प्रवृत्ति. इतने में ही उसकी समीक्षा है.
इसके निराकरण के लिए एक शिक्षण संस्था को स्थापित करने के पक्ष में हम काम कर रहे हैं.
- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment