समझाने वाले का पलड़ा ज्यादा भारी लगता रहे तो समझने वाले को समझ दूर ही लगती रहती है. अध्यापक यदि दूरी बना के रखे तो उसका multiply होना मुश्किल है. हमारा उद्देश्य multiply होना है.
मेरी समीक्षा में यह आ गया था कि राम multiply नहीं हुआ - जिसको मैं बहुत पढ़ा था. कृष्ण multiply नहीं हुआ - जिसकी रंगरेली से लेकर कूटनीति तक मैंने सब पढ़ा है. गाँधी जी आये - multiply नहीं हुए. विनोबा आये - multiply नहीं हुए. बुद्ध आये - multiply नहीं हुए. महावीर आये - multiply नहीं हुए. ईसा मसीह आये, वो कीला ठुकवा लिए - multiply नहीं हुए. हर व्यक्ति कीला ठुकवाने को तैयार नहीं हुआ शायद!
अब इस अनुसन्धान के सफल होने से multiply होने का एक रास्ता बना है. समाधान-समृद्धि का मॉडल multiply हो सकता है. मेरे assessment में यह आ गया कि यह सबकी ज़रुरत है, सबको स्वीकृत है.
प्रश्न: इतना सब ज्ञान जो आप लेकर चल रहे हैं, आपको भारी नहीं लगता?
उत्तर: कहाँ कुछ भारी है? अनुभव में कुछ बोझ होता ही नहीं है. synthesis में बोझ नहीं है. सब कुछ मूल्यांकन और समीक्षा में आने पर बोझ नहीं है. समाधान के अर्थ में ही यथास्थिति का समीक्षा हुआ रहता है. समाधान नहीं हो तो समीक्षा भी नहीं हो सकता. बोझ तभी तक है जब तक समाधान नहीं है. इसी आधार पर कह रहे हैं - समाधान-समृद्धि सबको स्वीकार है. चैन से सोचना, चैन से करना, चैन से सोना, चैन से जीना!
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
मेरी समीक्षा में यह आ गया था कि राम multiply नहीं हुआ - जिसको मैं बहुत पढ़ा था. कृष्ण multiply नहीं हुआ - जिसकी रंगरेली से लेकर कूटनीति तक मैंने सब पढ़ा है. गाँधी जी आये - multiply नहीं हुए. विनोबा आये - multiply नहीं हुए. बुद्ध आये - multiply नहीं हुए. महावीर आये - multiply नहीं हुए. ईसा मसीह आये, वो कीला ठुकवा लिए - multiply नहीं हुए. हर व्यक्ति कीला ठुकवाने को तैयार नहीं हुआ शायद!
अब इस अनुसन्धान के सफल होने से multiply होने का एक रास्ता बना है. समाधान-समृद्धि का मॉडल multiply हो सकता है. मेरे assessment में यह आ गया कि यह सबकी ज़रुरत है, सबको स्वीकृत है.
प्रश्न: इतना सब ज्ञान जो आप लेकर चल रहे हैं, आपको भारी नहीं लगता?
उत्तर: कहाँ कुछ भारी है? अनुभव में कुछ बोझ होता ही नहीं है. synthesis में बोझ नहीं है. सब कुछ मूल्यांकन और समीक्षा में आने पर बोझ नहीं है. समाधान के अर्थ में ही यथास्थिति का समीक्षा हुआ रहता है. समाधान नहीं हो तो समीक्षा भी नहीं हो सकता. बोझ तभी तक है जब तक समाधान नहीं है. इसी आधार पर कह रहे हैं - समाधान-समृद्धि सबको स्वीकार है. चैन से सोचना, चैन से करना, चैन से सोना, चैन से जीना!
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
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