ANNOUNCEMENTS



Sunday, December 2, 2018

साम्य ऊर्जा संपन्न होने से हर वस्तु में कार्य ऊर्जा को पहचानने का गुण है.



इकाई ऊर्जा संपन्न है, इसलिए क्रियाशील है.  व्यापक सत्ता साम्य ऊर्जा है, जिसमें संपृक्त रहने से इकाई क्रियाशील है.  इकाई के क्रियाशील होने से कार्य ऊर्जा होगा ही. 

साम्य ऊर्जा इकाई नहीं है, न यह इकाई में बंध पाता है.  पारगामी होने के आधार पर साम्य ऊर्जा इकाई में बंध नहीं पाता.  साम्य ऊर्जा इकाई में परिवर्तित नहीं होता है.  इसी आधार पर इसे साम्य ऊर्जा नाम दिया है.

अभी विज्ञान ऊर्जा को जो पहचाना है, वह कार्य ऊर्जा ही है.  विज्ञान अभी साम्य ऊर्जा को नहीं पहचाना है.  स्थिति में नित्य वर्तमान ऊर्जा को विज्ञान नहीं पहचान पाता है.  विज्ञान ने कार्य ऊर्जा को बर्बादी करने के स्वरूप में ही पहचाना है, आबादी के रूप में पहचाना नहीं है.  अभी करोड़ों आदमी विज्ञान की रोशनी में चल रहा है, यह कितना कष्टदायी बात है - आप सोच लो! 

साम्य ऊर्जा पहचान आने के बाद कार्य ऊर्जा के प्रयोजन को हम पहचान सकते हैं.  कार्य ऊर्जा का प्रयोजन है - अस्तित्व में प्रकटनशीलता.  अगली अवस्था को प्रकट करने के रूप में.  पिछली अवस्था में अगली अवस्था का भ्रूण समाया रहता है, तभी अगली अवस्था प्रकट हुई.  पदार्थावस्था ही प्राणावस्था स्वरूप में प्रकट हुई.  प्राणावस्था ही जीवावस्था स्वरूप में प्रकट हुई.  जीवावस्था ही ज्ञानावस्था के शरीर स्वरूप में प्रकट हुई. 

कार्य ऊर्जा मात्रा के साथ ही है.  हर मात्रा स्वयं में साम्य ऊर्जा संपन्न रहता ही है.  इसलिए हर मात्रा कार्य ऊर्जा को पहचानने योग्य है, हर अवस्था में. 

साम्य ऊर्जा संपन्न होने से हर वस्तु में कार्य ऊर्जा को पहचानने का गुण है.  इसके प्रमाण में हम शमशान में मुर्दा को जलाने ले जाते हैं.  मुर्दा ऊर्जा संपन्न था, इसलिए चिता की आग को पहचान लिया और उसके निर्वाह में जल गया.  दूसरा उदाहरण: चूल्हे में दाल को पकाने रखते हैं.  दाल ऊर्जा संपन्न थी, इसलिए चूल्हे की लकड़ी की कार्य ऊर्जा को पहचान लिया, और इस पहचान के निर्वाह में दाल पक गयी. 

प्रश्न:  मानव भी तो एक मात्रा है, मानव अपने व्यवहार में कार्यऊर्जा को कैसे पहचानता है?

उत्तर: मानव मानव के साथ बात करता है.  किसी बात पर नाराज होता है, किसी पर प्रसन्न होता है, किसी बात को स्वीकारता है, किसी को अस्वीकारता है.  यह कार्य ऊर्जा की ही परस्पर पहचान पूर्वक है.  साम्य ऊर्जा संपन्न होने के कारण यह सब कार्य करने की योग्यता हममे आ गयी.  साम्य ऊर्जा को समझने के लिए सहअस्तित्ववादी विधि से प्रेरणा है. 

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

No comments: