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Sunday, December 9, 2018

प्रमाणित करते हुए समझना ज्यादा प्रभावशाली तरीका है.



परंपरा में जो नहीं था उसका प्रस्ताव प्रस्तुत करना अनुसंधान है.  प्रस्ताव को समझना शोध है.  समझे बिना हम कुछ भी करते हैं तो वह अधूरा होता है.  समझने के लिए पूरा प्रयत्न होना चाहिए.  समझने में हम धीरे-धीरे भी समझ सकते हैं, जल्दी भी समझ सकते हैं.

प्रश्न:  अभी जो दर्शन के लोकव्यापीकरण के प्रयास चल रहे हैं, आप उनको कैसे देखते हैं?  क्या वे आपकी नज़र में जागृत परंपरा के भ्रूण स्वरूप हैं?

उत्तर:  जागृत परंपरा के लिए जो ज्ञान चाहिए वह मेरे पास है.  उसमें मैं पारंगत हूँ और स्वयं प्रमाण हूँ.  यहाँ से शुरुआत है.  यह इन कार्यक्रमों के जागृत परंपरा के "भ्रूण" होने की बात नहीं है.  आपकी भाषा को ठीक होने की आवश्यकता है.  मैं स्वयं प्रमाण हूँ, उस प्रमाण के multiply होने के लिए ये कार्यक्रम हैं.  multiply होने के क्रम में बहुत सारे लोग शुभ का स्वागत करने के लिए बैठे हैं.  शुभ के लिए शंका करने वाले भी बैठे हैं.  इन दो चैनल में आदमी मिलता है, इसमें हमको कोई आश्चर्य नहीं है.  जो जिस चैनल में जाना चाहता है, जाए!  हम तो किसी को मजबूर करने वाले नहीं हैं कि आप ऐसा ही करो!  आपको जैसा इच्छा हो आप वैसा करो!

प्रश्न: इस तरीके से आप सबके साथ कैसे जुडेंगे?

उत्तर: जिसको ज्यादा ज़रुरत है वो पहले आएगा, उसके बाद वाला उसके पीछे आएगा, उसके बाद वाला उसके पीछे आएगा!  ऐसा मैं अपने में विन्यास लगा लेता हूँ.  इसमें क्या कोई बचेगा?

दो तरीके हैं जुड़ने के - पहला, मॉडल को बनाने के basic/foundation work में शामिल होना है, दूसरा - मॉडल के प्रमाणित होने के बाद शामिल हो जाना है.

प्रश्न: लेकिन अभी स्वयं समझ में पक्के हुए बिना कैसे इसको लेकर कुछ करें?

उत्तर: प्रमाणों के आधार पर हम पक्के होंगे.  (अनुकरण पूर्वक) प्रमाणित करते हुए समझना ज्यादा प्रभावशाली तरीका है.  स्वयं पूरे शोध पूर्वक समझने की जिम्मेदारी लेने वाले तरीके में अपेक्षाकृत कम बल है.

"अच्छा काम करना है" - यह उद्देश्य आप में कहीं न कहीं बन चुका है.  उसके लिए आवश्यक योग्यता अर्जित होने की घटना जब होना है तब घटित हो जाएगा.  इसमें देरी-जल्दी की बात नहीं है.  जितना देर में हम कर लेते हैं, वही हमारी अर्हता है.  जैसे - मैंने भी इस समझ को किसी मुहूर्त में ही हासिल किया और अपने को परिपूर्ण होना स्वीकारा.  अब इसमें मैं देरी क्या गिनूँ, जल्दी क्या गिनूँ?  जब घटित होगा तब गणना हो जाएगा कि कितना समय लगा!  इसमें भविष्यवाणी इतना ही किया जा सकता है - "समझदारी का यह प्रस्ताव है, आवश्यकता के अनुसार आदमी इसको ग्रहण करेगा."

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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