मेरी साधना जब फलवती हुआ तो पता चला यह पूरी बात मेरे अकेले की नहीं है, यह मानव जाति की सम्पदा है. मानव जाति के पुण्य से यह मुझे हाथ लगा है - यह मैंने स्वीकार लिया. अब इसको मानव को समर्पित करने की जिम्मेदारी, यानी इसके लोकव्यापीकरण करने की जिम्मेदारी को मैंने स्वीकार लिया. लोकव्यापीकरण के लिए हर बात का उत्तर चाहिए. मानव कैसे रहेगा, शिक्षा कैसे रहेगा, संविधान कैसा रहेगा, आचरण कैसा रहेगा. यह न कम है, न ज्यादा है.
साधना से वस्तु (समझदारी) प्राप्त करना और उसका लोकव्यापीकरण करना दो अलग-अलग संसार ही है. लोकव्यापीकरण के लिए जीता जागता मॉडल चाहिए. साधना में मैं विरक्ति विधि से रहा. विरक्ति समझदारी का कोई मॉडल नहीं है. समझदारी का मॉडल है - समाधान समृद्धि. समझदारी से समाधान संपन्न मैं हो ही गया था, श्रम से समृद्धि का मैंने जुगाड़ कर लिया!
मानव जाति के पुण्य से मैं यह दर्शन को पाया हूँ, मानव जाति के पुण्य से यह सफल भी होगा. मानव जाति में शुभ स्वरूप में जीने की अपेक्षा रही है, पर शुभ का मॉडल नहीं रहा. अब मॉडल आ गया. minimum model को मैं जी कर प्रमाणित किया हूँ. अब अगला स्टेप है - कम से कम १०० परिवार इस समझ को एक गाँव में स्वराज्य व्यवस्था के स्वरूप को प्रमाणित करें और १२वीं तक एक शिक्षा संस्था को स्थापित करें. इसके बाद संसार में इसका ध्यानाकर्षण शुरू होगा. उसके बाद १०० परिवार से विश्व परिवार तक कैसे प्रमाणित होंगे, इसको सोचेंगे.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
साधना से वस्तु (समझदारी) प्राप्त करना और उसका लोकव्यापीकरण करना दो अलग-अलग संसार ही है. लोकव्यापीकरण के लिए जीता जागता मॉडल चाहिए. साधना में मैं विरक्ति विधि से रहा. विरक्ति समझदारी का कोई मॉडल नहीं है. समझदारी का मॉडल है - समाधान समृद्धि. समझदारी से समाधान संपन्न मैं हो ही गया था, श्रम से समृद्धि का मैंने जुगाड़ कर लिया!
मानव जाति के पुण्य से मैं यह दर्शन को पाया हूँ, मानव जाति के पुण्य से यह सफल भी होगा. मानव जाति में शुभ स्वरूप में जीने की अपेक्षा रही है, पर शुभ का मॉडल नहीं रहा. अब मॉडल आ गया. minimum model को मैं जी कर प्रमाणित किया हूँ. अब अगला स्टेप है - कम से कम १०० परिवार इस समझ को एक गाँव में स्वराज्य व्यवस्था के स्वरूप को प्रमाणित करें और १२वीं तक एक शिक्षा संस्था को स्थापित करें. इसके बाद संसार में इसका ध्यानाकर्षण शुरू होगा. उसके बाद १०० परिवार से विश्व परिवार तक कैसे प्रमाणित होंगे, इसको सोचेंगे.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment