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Sunday, April 29, 2012

स्वयं की संतुष्टि के लिए अध्ययन


संयम में जब मुझे दृश्य दिखना शुरू हुआ, पहले दिन से ही मुझे यह स्वीकार हो गया कि यह मेरे स्वरूप का ही अध्ययन है.  यह मेरे स्वयं की संतुष्टि के लिए अध्ययन है – ऐसा मेरी स्वीकृति हुई.  अध्ययन पूरा होने के बाद मेरी स्वीकृति हुई कि यह मेरा ही नहीं सर्व-मानव के अध्ययन की वस्तु है.

प्रश्न: आपका इतना दृढ़ विश्वास कैसे है कि अध्ययन विधि से भी अनुभव को पाया जा सकता है, जिसको आपने इतनी साधना के फलस्वरूप पाया?

उत्तर: क्योंकि मैंने स्वयं अध्ययन ही किया है!  मैंने साधना-समाधि विधि से चल कर अध्ययन किया.  मैंने जो देखा उसकी सूचना देने योग्य हो गया – उस आधार पर मेरा विश्वास है कि उस सूचना से आप भी अध्ययन कर सकते हैं.  समाधि से केवल मेरी संयम के लिए अर्हता बनी.  उसके आगे अध्ययन में हम और आप समान हैं.  जैसे अनुभव में मैंने देखा, अनुभवगामी विधि से उसको अध्ययन करने का व्यवस्था दे दिया.  अनुभव मूलक विधि से दी गयी सूचना से आपको अनुमान होता है, जो आपके अनुभव में जाकर confirm हो जाता है.  इतनी ही बात है.  जो अनुमान सटीक बन पाता है, उसमे आपकी निष्ठा बनती है और वह आगे अनुभव में आता है.  जो अनुमान सटीक नहीं बन पाता है, उसके लिए आपमें जिज्ञासा बनती है.  जिसका उत्तर अनुभव संपन्न व्यक्ति देता है.

- श्री ए. नागराज के साथ संवाद के आधार पर (दिसम्बर २००८). 

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