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Tuesday, April 10, 2012

व्यंजना और अनुभव

प्रश्न: “व्यंजना” से क्या आशय है?

उत्तर: हर मानव में, हर आयु में कल्पनाशीलता है. कल्पनाशीलता में जो कुछ भी आकार आता है, वह व्यंजना है. वही साक्षात्कार होने का आधार बनता है. हर शब्द का अर्थ होता है, अर्थ के स्वरूप में जो वस्तु है उसका आकार यदि कल्पना में आ गया तो व्यंजित हो गया, उस पर विश्वास हो गया तो साक्षात्कार हो गया. व्यंजना का अधिकार चित्त में चित्रण करने के रूप में है, बुद्धि में बोध करने के रूप में है और आत्मा में अनुभव करने के रूप में है.

प्रश्न: अनुभव क्या है?

उत्तर: अनुक्रम से होने वाले उदय को अनुभव नाम दिया है. सह-अस्तित्व में चारों अवस्थाएं कैसे उदय हुई हैं इसको जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करना – इसका नाम है अनुभव. ये चारों बात (जानना, मानना, पहचानना और निर्वाह करना) आता है तो अनुभव है, अन्यथा अनुभव नहीं है. अनुभव ही मूल्य अनुभूति का अधिकार है, जिसको व्यक्त करना क्रम से होता है. मूल्य अनुभूति का कोई क्रम नहीं है. अनुभव में सभी मूल्य समाया है.

प्रश्न: “अनुभव से अधिक उदय ही अनुमान है” – इससे क्या आशय है?

उत्तर: न्याय-धर्म-सत्य पूर्वक जीना मेरे अनुभव में है. मैं ऐसा जी ही सकता हूँ, साथ में मैं अनुमान करता हूँ – सभी मेरे जैसे न्याय-धर्म-सत्य पूर्वक जी सकते हैं. इस तरह अनुमान अनुभव से अधिक हुआ या नहीं?


- नवम्बर २००९, अछोटी अध्ययन शिविर के प्रतिभागियों के साथ संवाद पर आधारित.

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