व्यापक वस्तु में प्रकृति की इकाइयां डूबी, भीगी और घिरी है. व्यापक वस्तु पारगामी होने के आधार पर सभी इकाइयां इसमें भीगी है. परमाणु-अंश भी भीगा हुआ है, इसीलिये ऊर्जा संपन्न है, इसीलिये परमाणु क्रियाशील है. क्रिया का स्वरूप बना – श्रम, गति, परिणाम. अकेले परमाणु-अंश में गति तो दिखता है, पर श्रम और परिणाम नहीं दिखता है. परमाणु-अंश जब परमाणु के रूप में स्वयं-स्फूर्त विधि से गठित हो जाता है – तो श्रम-गति-परिणाम के स्वरूप में वह परमाणु एक निश्चित-आचरण को व्यक्त करता है. दो अंश के परमाणु का आचरण भी निश्चित है. परमाणु व्यवस्था का मूल स्वरूप है. जो कुछ भी अस्तित्व में प्रकाशित है - वह व्यवस्था के सूत्र पर ही निर्भर है. मानव के अस्तित्व में प्रकाशित होने का आधार व्यवस्था है. व्यवस्था में जीने के आधार पर ही मानव समाधान-समृद्धि पूर्वक जी सकता है, फलस्वरूप आगे चलकरके अभय और सह-अस्तित्व को प्रमाणित कर पाता है.
- श्री ए. नागराज के साथ संवाद के आधार पर (दिसम्बर २००८).
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