क्रिया की अवधि का नाम है – काल. जैसे सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक धरती की घुर्णन क्रिया की अवधि को “एक दिन” कहते हैं. क्रिया की अवधि का विभाजन करने का अधिकार मानव के पास आया, कल्पनाशीलता की बदौलत. जैसे एक दिन के २४ विभाजन करके २४ घंटे, १ घंटे के ६० विभाजन करके ६० मिनट, आदि. मानव ने इस विभाजित अवधि में क्रिया को पहचानने का प्रयास किया. “काल की अवधि में क्रिया हो रही है” – ऐसा मान लेते हैं. जबकि क्रिया विभाजित होती नहीं है. क्रिया निरंतर बनी ही रहती है. “काल के अनुसार क्रिया होती है” – मानव ने ऐसा उल्टा सोच लिया. यहीं से बेवकूफी की शुरुआत है. काल की अवधि में क्रिया की गणना करने का प्रयास करना बुद्धूपन हुआ कि नहीं? यही “बुद्धिमत्ता” सारे अनर्थ करने का आधार बना है.
काल की गणना मानव की कल्पनाशीलता द्वारा है. अस्तित्व में “काल” शब्द से इंगित कोई वस्तु नहीं है. हम यह गणना नहीं कर सकते हैं – पदार्थ कब हुआ था? हम यह गणना नहीं कर सकते हैं – जीव कब हुआ था? हम यदि ऐसी कोई गणना करते हैं तो वह हमारी ‘इच्छा’ या ‘कल्पना’ के अनुसार ही होगा, ‘अनुभव’ के आधार पर नहीं होगा. अस्तित्व-धर्म के आधार पर काल की गणना नहीं है. पुष्टि-धर्म के आधार पर काल की गणना नहीं है. वंश अनुरूप जीने की आशा धर्म के आधार पर काल की गणना नहीं है. हम यही कह सकते हैं – मानव से पहले जीव-संसार था, जीव-संसार के पहले वनस्पति-संसार था, वनस्पति-संसार के पहले पदार्थ संसार था – इतनी हम गणना कर सकते हैं.
- नवम्बर २००९, अछोटी अध्ययन शिविर के प्रतिभागियों के साथ संवाद पर आधारित.
काल की गणना मानव की कल्पनाशीलता द्वारा है. अस्तित्व में “काल” शब्द से इंगित कोई वस्तु नहीं है. हम यह गणना नहीं कर सकते हैं – पदार्थ कब हुआ था? हम यह गणना नहीं कर सकते हैं – जीव कब हुआ था? हम यदि ऐसी कोई गणना करते हैं तो वह हमारी ‘इच्छा’ या ‘कल्पना’ के अनुसार ही होगा, ‘अनुभव’ के आधार पर नहीं होगा. अस्तित्व-धर्म के आधार पर काल की गणना नहीं है. पुष्टि-धर्म के आधार पर काल की गणना नहीं है. वंश अनुरूप जीने की आशा धर्म के आधार पर काल की गणना नहीं है. हम यही कह सकते हैं – मानव से पहले जीव-संसार था, जीव-संसार के पहले वनस्पति-संसार था, वनस्पति-संसार के पहले पदार्थ संसार था – इतनी हम गणना कर सकते हैं.
- नवम्बर २००९, अछोटी अध्ययन शिविर के प्रतिभागियों के साथ संवाद पर आधारित.
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