मैंने जब अध्ययन किया तो मेरे पास अस्तित्व को पढने के लिए पहले से सूचना उपलब्ध नहीं था। जो मैंने समझा उसकी सूचना आपके अध्ययन के लिए मैंने प्रस्तुत किया है। मैंने बिना सूचना के ही जो अध्ययन कर लिया, उसको सूचना के साथ अध्ययन करके अनुभव करने में आपको क्या तकलीफ है?
प्रश्न: हम अभी अध्ययन-क्रम में हैं। जितना समझे हैं, उसको अनुकरण-अनुसरण पूर्वक जीने का प्रयास भी कर रहे हैं। फिर भी उत्साह कभी कभी ऊपर-नीचे होता रहता है। उत्साह को कैसे बनाए रखें?
उत्तर: अनुभव के लिए उत्साह को बनाए रखिये - सूचना के आधार पर। आगे चलकर इसको अनुभव करेंगे... इस तरह। सौ हथौड़े की चोटों के बाद एक विशाल पत्थर टूटता है। ९९ चोटें रही, तभी १००वी चोट पर पत्थर टूटता है। जितनी सीमा तक समझ को जी पाते हैं, उससे खुशी भी मिलती है - जिससे आगे के लिए उत्साह बना रहता है। प्रमाण अनुभव के बाद ही है।
विरक्ति विधि से मैंने साधना किया था। साधना-काल में हम हर समय खुश-हाली ही मनाते रहे। कभी अभावग्रस्त या पीड़ा-ग्रस्त नहीं हुए। जबकि साधना में हम सूखते ही रहे! आपके लिए अध्ययन का मार्ग कोई विरक्ति-विधि नहीं है। इसीलिये मैं मानता हूँ, सर्व-मानव के लिए सुलभ अध्ययन-विधि ही है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
प्रश्न: हम अभी अध्ययन-क्रम में हैं। जितना समझे हैं, उसको अनुकरण-अनुसरण पूर्वक जीने का प्रयास भी कर रहे हैं। फिर भी उत्साह कभी कभी ऊपर-नीचे होता रहता है। उत्साह को कैसे बनाए रखें?
उत्तर: अनुभव के लिए उत्साह को बनाए रखिये - सूचना के आधार पर। आगे चलकर इसको अनुभव करेंगे... इस तरह। सौ हथौड़े की चोटों के बाद एक विशाल पत्थर टूटता है। ९९ चोटें रही, तभी १००वी चोट पर पत्थर टूटता है। जितनी सीमा तक समझ को जी पाते हैं, उससे खुशी भी मिलती है - जिससे आगे के लिए उत्साह बना रहता है। प्रमाण अनुभव के बाद ही है।
विरक्ति विधि से मैंने साधना किया था। साधना-काल में हम हर समय खुश-हाली ही मनाते रहे। कभी अभावग्रस्त या पीड़ा-ग्रस्त नहीं हुए। जबकि साधना में हम सूखते ही रहे! आपके लिए अध्ययन का मार्ग कोई विरक्ति-विधि नहीं है। इसीलिये मैं मानता हूँ, सर्व-मानव के लिए सुलभ अध्ययन-विधि ही है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)
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