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Sunday, July 4, 2010

अनुमान, अनुक्रम, अनुभव

अनुमान से अनुभव तक पहुँचते हैं। अनुभव होता है, तो अनुमान सही है। अनुभव नहीं होता, तो अनुमान सही नहीं है। अनुमान करने की ताकत कल्पनाशीलता के स्वरूप में हर व्यक्ति के पास है। उसके सहारे अनुभव तक पहुँच सकते हैं। जीने में जो प्रमाणित हो सके, वह अनुमान सही है। जीना प्रमाण ही होता है, अनुमान नहीं होता। जीने के अलावा और किसी चीज को प्रमाण कैसे माना जाए? "मैं प्रमाणित स्वरूप में जी रहा हूँ" - इस जगह आपको आना है।

अनुक्रम से अनुभव होता है। जो कुछ भी होना हुआ है, और जो कुछ भी होना है - वह अनुक्रम है। अनुक्रम का अर्थ है - एक से एक जुडी हुई श्रंखला विधि। इस विधि को पूरा समझने से अनुमान होता है। अनुमान होने के बाद अनुभव होता है। अनुभव होने के बाद प्रयोजन सिद्ध होता है, प्रमाण होता है। मानव के सुधरने के लिए, सुसज्जित होने के लिए यही विधि है।

अध्ययन में यदि मन लगता है तो अनुभव हो जाएगा।
अध्ययन में मन नहीं लगता है तो अनुभव नहीं होगा।

अनुभव के पहले प्रमाण नहीं है। अनुभव के पहले अनुकरण-अनुसरण विधि से "अच्छा लगने" की स्थिति में आ जाते हैं, "अच्छा होना" नहीं होता। केवल अनुसरण-अनुकरण पर्याप्त नहीं है। जीने में प्रमाणित होने पर ही "अच्छा होना" होता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)

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