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Monday, July 5, 2010

ज्ञान

मानव में ऊर्जा-सम्पन्नता ज्ञान के रूप में है। भ्रमित रहते तक ऊर्जा का प्रयोग मनुष्य चार विषयों और पांच संवेदनाओं के रूप में करता है। जागृत होने पर ऊर्जा का प्रयोग मनुष्य तीन ईश्नाओं और उपकार में करता है।

प्रश्न: चार विषयों के लिए क्या "ज्ञान" शब्द का प्रयोग उचित है?

उत्तर: ज्ञान के बिना प्रवृत्ति नहीं है। विषयों के ज्ञान से ही विषयों में प्रवृत्ति है। उसी तरह संवेदनाओं के ज्ञान से संवेदनाओं में प्रवृत्ति है। ईश्नाओं के ज्ञान से ईश्नाओं में प्रवृत्ति है। उपकार के ज्ञान से उपकार में प्रवृत्ति है। ज्ञान के चार स्तर हैं। जिस स्तर के ज्ञान को अपनाते हैं, उसी की व्याख्या अपने जीने में करने लगते हैं। विषयों में प्रवृत्ति और संवेदनाओं में प्रवृत्ति जीव-चेतना की सीमा है। ईश्नाओं में प्रवृत्ति और उपकार में प्रवृत्ति से मानव-चेतना की शुरुआत है।

पांच संवेदनाएं और चार विषय - यह जीव-चेतना की सीमा है। तीन ईश्नाओं पूर्वक जीने से मानव-चेतना की शुरुआत है। इसमें संवेदनाएं नियंत्रित रहती हैं। जीव-चेतना में संवेदनाएं नियंत्रित नहीं रहती हैं। इतना ही अंतर है। मानव चेतना से उपकार की शुरुआत है।

मानव चेतना सहज ज्ञान को मध्यस्थ-दर्शन में प्रतिपादित किया गया है। जिससे सह-अस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, और मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान में पारंगत होना और प्रमाणित होना संभव है। जिससे ज्ञान सम्मत विवेक और विवेक सम्मत विज्ञान पूर्वक जीना होता है।

व्यापक वस्तु के प्रतिरूप का नाम है - "ज्ञान"। मानव में ऊर्जा-सम्पन्नता ज्ञान के रूप में है। व्यापक वस्तु ही मानव द्वारा "ज्ञान" के नाम से प्रकाशित होता है। व्यापक वस्तु को जो हम अभिव्यक्त कर सकते हैं, संप्रेषित कर सकते हैं, आचरण में ला सकते हैं - उसका नाम है "ज्ञान"। ज्ञान के चार स्तर बताये हैं - जीव-चेतना, मानव-चेतना, देव-चेतना, और दिव्य-चेतना। जीव-चेतना से मानव-चेतना श्रेष्ठ है। मानव-चेतना से देव-चेतना श्रेष्ठतर है। देव-चेतना से दिव्य-चेतना श्रेष्ठतर है। जिस स्तर पर आप जीना चाहें - जियें! हमारा कोई आग्रह नहीं है - आप ऐसे ही जियें।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)

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