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Monday, July 5, 2010

नियंत्रण

व्यापक में प्रकृति डूबा हुआ, भीगा हुआ, और घिरा हुआ है। भीगा हुआ से ऊर्जा-सम्पन्नता है। डूबा हुआ से क्रियाशीलता है। घिरा हुआ से नियंत्रण है। भीगा हुआ के साथ डूबा हुआ और घिरा हुआ बना ही है।

प्रश्न: व्यापक से इकाई घिरे होने से वह नियंत्रित कैसे है?

उत्तर: घिरा होना ही नियंत्रण है। व्यापक से इकाई घिरा न हो तो उसका इकाइत्व कैसे पहचान में आएगा? नियंत्रण का मतलब है - निश्चित आचरण की निरंतरता।

प्रश्न: जड़ प्रकृति में नियंत्रण कैसे है?

उत्तर: हर जड़-इकाई व्यापक वस्तु से घिरी है, इसलिए नियंत्रित है। जड़ वस्तु में अनियंत्रित करने वाली कोई बात नहीं है।

प्रश्न: मनुष्य भी तो व्यापक में घिरा है, फिर वह नियंत्रित क्यों नहीं है?

उत्तर: मनुष्य नियंत्रण चाहता है। पर अपनी मनमानी के अनुसार नियंत्रण चाहता है, उसमें वह असफल हो गया है। पूरा मानव-जाति इसमें असफल हो गया है। असफल होने के बाद हम पुनर्विचार कर रहे हैं।

अनियंत्रित होने के लिए मनुष्य ने प्रयत्न किया, पर हो नहीं पाया। इसके आधार पर पता चलता है, नियंत्रित रहना जरूरी है। मनुष्य के लिए क्या नियंत्रित रहना जरूरी है? इसका शोध करने पर पता चलता है - संवेदनाएं नियंत्रित रहना जरूरी है। संवेदनाएं नियंत्रित कैसे रहेंगी? - इसका शोध करते हैं तो पता लगता है - समझ पूर्वक संवेदनाएं नियंत्रित रहेंगी। सत्ता में हम घिरे हैं - यह समझ में आने पर संवेदनाएं नियंत्रित रहती हैं। सत्ता के बिना चेतना नहीं है। चेतना के बिना मानव-चेतना नहीं है। मानव-चेतना के बिना संवेदनाएं नियंत्रित नहीं हैं।

प्रश्न: मनुष्य भी तो व्यापक में सदा डूबा-भीगा-घिरा रहता है, फिर अध्ययन-पूर्वक अनुभव के बाद उसमें तात्विक रूप में ऐसा क्या हो जाता है कि वह निश्चित-आचरण को प्रमाणित करने लगता है?

उत्तर: अध्ययन पूर्वक अनुभव करने से जीवन की प्रवृत्ति बदल जाती है। मनुष्य में तात्विकता उसकी प्रवृत्ति भी है। प्रवृत्ति बदलती है तो आचरण परिवर्तित हो जाता है। कल्पनाशीलता प्रवृत्ति के रूप में है। कल्पनाशीलता का तृप्ति-बिंदु ज्ञानशीलता या समझ है। ज्ञान-पूर्वक संवेदनाएं नियंत्रित हो जाती हैं। संवेदनाएं नियंत्रित होने पर मनुष्य द्वारा निश्चित आचरण पूर्वक समग्र व्यवस्था में भागीदारी करना बनता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)

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