मनुष्य के पास पाँच विभूतियाँ है - रूप, पद, धन, बल, और बुद्धि। इसमें से मनुष्य ने चार का - रूप, पद, धन, और बल - प्रयोग करके व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास करके देख लिया है। ये सभी प्रयास असफल रहे हैं। इस तरह - भ्रम विधि से जीने का कोई मॉडल निकलता नहीं है।
मध्यस्थ-दर्शन "बुद्धि" के आधार पर व्यवस्था में जीने का प्रस्ताव है।
बुद्धि के आधार पर "व्यवस्था में जीना" ही संविधान है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment