सहअस्तित्व क्यों और कैसा है?
सहअस्तित्व में जो व्यापक वस्तु है वह नित्य एक सा रहता है, सतत एक सा विद्यमान रहता है. उसमे कोई बदलाव होता नहीं है. आज ऐसे पारदर्शी-पारगामी है, कल दूसरी तरह पारदर्शी-पारगामी हो - उसमे ऐसा कुछ होता नहीं है. एक ही सा रहता है. व्यापक में भीगे रहने से प्रकृति की इकाइयों में एक ही सा आचरण करने की प्रेरणा होता है. इस आधार पर नियम यथावत रहता है.
"सहअस्तित्व में सब हैं" - यह बात अभी तक जो सोचा नहीं गया था, वह यहाँ मध्यस्थ दर्शन में प्रतिपादित है. सहअस्तित्व में प्रत्येक एक अपने यथास्थिति में वैभव है. यह मुख्य बात है. यह समझ में आने पर मानव को भी अपने यथास्थिति में रहने की इच्छा बन जाती है. इच्छा बन जाती है तो एक दिन वह स्वयंस्फूर्त हो ही जाता है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००८, अमरकंटक)
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