मानव चेतना, देव चेतना और दिव्य चेतना बोध और अनुभव में तीनो समान हैं, व्यवहार में समान हैं, आचरण में समान हैं, व्यवस्था में जीने में समान हैं - उपकार में अंतर है. मानव चेतना में न्यूनतम उपकार प्रमाणित हुआ. देव मानव में उपकार अधिक हुआ. दिव्य मानव उपकार प्रवृत्ति में पूर्ण है. मानव चेतना और देव चेतना को "विश्राम" की स्थितियां कहा है. दिव्य चेतना को "पूर्ण विश्राम" की स्थिति कहा है. जब संसार से कुछ लेने का कामना ही न हो, संसार के साथ केवल उपकार ही करना हो - इसको "दिव्य मानव" नाम दिया जाए या नहीं दिया जाए?
-श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००८, अमरकंटक)
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