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Friday, November 9, 2018

minimum beautiful model

सहअस्तित्व ही परम सत्य है.  सहअस्तित्व विधि से सर्वमानव का एक मानसिकता में जीना बन जाता है.  भ्रम में जीते हुए एक मानसिकता हो नहीं सकता.  मानसिकताओं में टकराव बना ही रहता है.  जैसे - व्यापार में दो संस्थाओं का, दो व्यापारियों का एक मन नहीं होता, उनकी नीतियां अलग अलग होती हैं.  इसको आप लोग दावे के साथ सत्यापित कर सकते हो. 

मैं जो दावा करता हूँ - पहला, सहअस्तित्व को देखे होने का दावा करता हूँ.  दूसरा, सहअस्तित्व में जीने का दावा करता हूँ.  तीसरा, सहअस्तित्व में जीने के आधार पर व्यवस्था में जीने का दावा करता हूँ.  ये तीन दावा है मेरे पास!  सहअस्तित्व में जीने में समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी तीनो समाहित हैं.  इन तीनों का निर्वाह मैं करता ही हूँ.  अभी इतने लोग मेरे संपर्क में आये पर एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि मैंने जवाब नहीं दिया हो.  उनका तृप्त होना या नहीं होना अलग चीज़ है.  एक समय तक आप अतृप्त रहेंगे, फिर तृप्त होंगे - यह हो सकता है.  किन्तु मैंने जवाब नहीं दिया - यह नहीं हुआ. 

मैंने अपने आप को minimum beautiful model के स्वरूप में प्रस्तुत किया है.  इससे आगे और अच्छा करने की संभावना रखी ही है!  यदि समझें तो!  इसका आधार है - मुझसे जो आपने सुना उसके अर्थ में जाने का अधिकार आपही के पास है.  मैं जैसा समझा हूँ उसको सूचना के रूप में आपको प्रस्तुत कर सकता हूँ.  भाषा में इससे ज्यादा नहीं हो सकता.  मैं जो समझा हूँ, सोचता हूँ, करता हूँ, और जीता हूँ - इन चार बातों का भाषाकरण है.  उसमें से जो मैं करता हूँ - वह आपको पहले पकड़ में आता है.  मैं जो जीता हूँ, उसको पकड़ने के लिए आपको ज्यादा जोर मन पड़ता है.  मैं जो सोचता हूँ, उसको पकड़ने के लिए उससे ज्यादा मन लगाना पड़ता है.  जो मैं समझता हूँ, उससे भी ज्यादा.  ये चार स्तर हैं मन लगाने के.  अध्ययन में मन लगाना पड़ता है.  यही ध्यान है.  अध्ययन में मन लगाने का प्रमाण है - ये चारों बात समझ में आना. 

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक)

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