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Wednesday, November 21, 2018

योग-संयोग न हो, ऐसा कोई स्थिति ही नहीं है



सत्ता में संपृक्त प्रकृति के कारण योग-संयोग है.  सारी क्रियाएं इसी प्रकार हैं.

मानव शरीर यात्रा के सुगम बने रहने के लिए भी योग-संयोग चाहिए.  जैसे हवा चाहिए ही.  हवा नहीं हो मानव शरीर सुरक्षित नहीं रहेगा.

योग-संयोग न हो, ऐसा कोई स्थिति ही नहीं है.  ऐसी कोई स्थिति को हम पहचान नहीं पायेंगे जिसमे योग-संयोग न हो.

प्रश्न:  योग-संयोग के साथ-साथ प्रकृति में वियोग भी देखा जाता है.  उसका क्या प्रयोजन है?

उत्तर: वियोग का प्रयोजन है - संतुलन!  चारों अवस्थाओं के बने रहने के लिए.  जैसे - मांसाहारी जीवों का होना जंगल में जीवों के संतुलन के लिए आंकलित होता है.  आहार विधि से ही शाकाहारी और मांसाहारी जीवों में संतुलन है.  मारक (विषैली) वनस्पतियों का होना भी संतुलन के लिए आंकलित होता है.

सारक-मारक वनस्पति और शाकाहारी-मांसाहारी जीवों का प्रकटन योग-संयोग विधि से होता है.  योग-संयोग सदा रहता ही है, इसलिए घटित होता है.  योग-संयोग घटित होता है जिससे चारों अवस्थाओं में संतुलन बने रहता है.  घटना, योग और संयोग ये पूरा का पूरा चारों अवस्थाओं के बने रहने के लिए है.  यदि इस ज्ञान के आधार पर मानव विचार करता है तो उसके कार्यों का फल-परिणाम सकारात्मक होता है. 

सहअस्तित्व नित्य प्रभावी सिद्धांत के आधार पर योग-संयोग की उपलब्धता निश्चित होने पर सफलताएं होते हैं.

जैसे - धरती पर एक जलने वाला वस्तु और एक जलाने वाला वस्तु दोनों एक निश्चित मात्रा में मिलने से पानी का प्रकटन होता है.  दोनों की मात्रा में यदि घट-बढ़ होता है तो पानी नहीं होगा.  धरती पर इनकी निश्चित मात्रा को क्या कोई बनाता है?  अच्छे ढंग से इसको सोच लो!  यह एक मुद्दा पर्याप्त है अस्तित्व में योग-संयोग के महत्त्व को समझने के लिए.  सहअस्तित्व नित्य प्रभावी है इस आधार पर योग-संयोग पूर्वक ये वस्तुएं निश्चित अनुपात में बनती हैं.  सहअस्तित्व को ही चारों अवस्थाओं के स्वरूप में प्रकट होना है.  चारों अवस्थाओं के स्वरूप में प्रकट होने पर ही सहअस्तित्व का वैभव है.  इससे कम में होता नहीं है.

धरती पर चारों अवस्थाओं का प्रकटन होना है और उनका बने रहना है, इसके आधार पर धरती पर सारा योग-संयोग है.

- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६, अमरकंटक) 

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