ANNOUNCEMENTS



Thursday, April 13, 2017

रोटी, बेटी, राज्य और धर्म

मानव जाति अनेक समुदायों में अभी बँट गया है.  इन समुदायों का एक दूसरे के साथ कोई तालमेल नहीं है.  सबका अपने ढंग का नाच-गाना, अपने ढंग का पहनावा, अपने ढंग का रहन-सहन, अपने ढंग का खान-पान.

अखंड समाज - सार्वभौम व्यवस्था के लिए रोटी, बेटी, राज्य और धर्म में एकता होना जरूरी है.  अभी मानव इस जगह में नहीं है.  इसके लिए शिक्षा की आवश्यकता है.  चेतना विकास - मूल्य शिक्षा इसको जोड़ता है.  

रोटी-बेटी में एकता होने पर हम अखंड-समाज का अनुभव करते हैं.  

प्रश्न:  "रोटी-बेटी में एकता" का क्या अर्थ है?

उत्तर:  "रोटी में एकता" का मतलब है - हम सब मानव साथ में एक प्रकार के आहार को खा सकें।  आज की स्थिति में सबकी रोटी (आहार) अलग अलग है.  रोटी में एकता के लिए मानव को अपनी आहार पद्दति को तय करना होगा।  ऐसा आहार शाकाहार ही हो सकता है.  "बेटी में एकता" का मतलब है - हम किसी भी परिवार में विवाह सम्बन्ध तय कर सकें।  ऐसा हुए बिना "अखंड समाज" हुआ - कैसे माना जाए?  रोटी-बेटी संस्कृति-सभ्यता से जुड़ी बात है.

प्रश्न: राज्य और धर्म में एकता होने का क्या अर्थ है?

उत्तर: राज्य नीति  (तन मन धन रुपी अर्थ की सुरक्षा) और धर्म नीति (तन मन धन रुपी अर्थ का सदुपयोग) विधि (क़ानून) और व्यवस्था से जुड़ी हैं.  राज्य और धर्म एक दूसरे के पूरक हैं.  राज्य के बिना धर्म और धर्म के बिना राज्य नहीं हो सकता।  

अभी हर राष्ट्र अपनी सीमा के अंतर्गत अपनी-अपनी विधि और व्यवस्था की बात करता है.  भारत भी करता है.  नेपाल भी करता है.  हर राष्ट्र विखंडित होता गया है.  एकता को लेकर काम ही नहीं किया।  अभी ऐसा सोचते हैं - विखंडित करने से हम ज्यादा प्रगति करते हैं.  सार्वभौम व्यवस्था के लिए धरती को एक "अखंड राष्ट्र" के रूप में पहचानना होगा। 

सार्वभौम व्यवस्था (अखंड राष्ट्र) स्वरूप में राज्य के पहुँचने के लिए "अखंड समाज" होना बहुत आवश्यक है.  अखंड समाज के बिना सार्वभौम व्यवस्था होगा नहीं।

प्रश्न: हमारी इस विखंडनवादी सोच से तो "अखंड समाज" भी कैसे बनेगा?  फिर रास्ता क्या है?

उत्तर:  विखंडनवादी सोच ही संयुक्त परिवार से एकल परिवार (nuclear family) की ओर ले गया.  मियाँ-बीवी  राजी रहें - इतने से अखंड समाज होता हो तो कर लो!  अखंड समाज सर्वमानव के साथ होता है.  उसके लिए एकल परिवार में जीना क्या पर्याप्त होगा?  

अखंड समाज के लिए सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में संबंधों को पहचानना होगा।  सभी मानव सम्बन्धी हैं.  कम से कम मित्र सम्बन्ध सबके साथ है.  सम्बन्ध के आधार पर पहचान और मूल्यों का निर्वाह।  मूल्यों का निर्वाह ही निष्ठा है.  पहले परिवार में व्यवस्था और परिवार में न्याय।  उससे पहले मानव में स्वयं में विश्वास।  समझदार होने, समाधान संपन्न होने, समृद्धि को प्रमाणित करने योग्य होने - ये तीनों के जुड़ने से स्वयं में विश्वास होता है.  

इसका रास्ता शिक्षा है.  हर स्नातक को इन तीनों के योग्य बनाना हम चाह रहे हैं.  समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने से ही मानवों में एक दूसरे के भय से मुक्ति की बात होती है.  यह अभयता ही अखंड समाज का स्वरूप है.  

- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २०१०, अमरकंटक)

No comments: