ANNOUNCEMENTS



Sunday, April 23, 2017

ध्यान देना होगा

प्रश्न:  ज्ञान यदि हमको "प्राप्त" ही है तो वह हमारे अनुभव में कैसे नहीं है, हम इसको प्रमाणित क्यों नहीं कर पा रहे हैं?

उत्तर: "प्राप्त" को पहचान सके इसीलिये अध्ययन है.  प्राप्त ज्ञान में अनुभव करने के लिए अध्ययन को जोड़ दिया.  जो "है" - उसी का अध्ययन कर सकते हैं.  जो "है ही नहीं" - उसका कैसे अध्ययन करोगे?  अध्ययन की प्रक्रिया मानव परंपरा में उपलब्ध नहीं थी - उसको जोड़ दिया.

सत्ता में सम्पृक्तता (भीगे रहना) ही जीवन में ज्ञान के प्राप्त रहने का आधार  है.  जीवन को ज्ञान प्राप्त करने के लिए "प्रयत्न" नहीं करना पड़ता.  ज्ञान प्राप्त रहता ही है.  ज्ञान से संपन्न होने के लिए मानव को कोई प्रयत्न नहीं करना है.  प्राप्त ज्ञान को कार्य रूप में परिणित करने के लिए मानव को प्रयत्न करना होता है.  शरीर द्वारा ज्ञान को प्रमाण रूप में प्रस्तुत करने के लिए पूरा अध्ययन है.  अध्ययन ही अभ्यास है, साधना है.

अध्ययन एक synchronization प्रोग्राम है, उसको प्रगट करना एक expansion प्रोग्राम है.  समझने में एक बिंदु तक पहुँचने की बात है.  Expansion अभिव्यक्ति में है.  समझने की विधि में expansion को लगाओगे तो कभी समझ नहीं आएगा.  इसी में रुका है.  अध्यवसायिक विधि में या intellectually रुकावट वहीं है.  नहीं तो अभी तक पार ही न पा जाते!  Synchronization की जगह Expansion को लगा देते हैं - यहीं रुका है.   आप अपना शोध करोगे तो यही पाओगे.  ७०० करोड़ आदमी अपने को शोध करें तो यही पायेंगे.  आप शोध ही नहीं करें तो हम नमन के अलावा क्या कर सकते हैं?

प्रश्न:  Synchronization की जगह Expansion में न जाएँ, इसके लिए हम क्या करें?

उत्तर:  ध्यान देना होगा.  अध्ययन के लिए ध्यान देना होता है, अनुभव के बाद ध्यान बना रहता है.  मन लगाना ही ध्यान देना है.  मन लगेगा तो अध्ययन होगा, मन नहीं लगेगा तो अध्ययन नहीं होगा - किसी का भी!  जैसे - मेरा  अनुसंधान करने में मन लगा, तभी मैं अनुसंधान कर पाया.  मेरा मन नहीं लगता तो मैं कहाँ से अनुसंधान करता?  उसी तरह अध्ययन के लिए भी मन लगाना पड़ता है.  मैंने तीस वर्ष मन लगाया - आप तीस दिन तो मन को लगाओ!  आप तीन वर्ष तो मन को लगाओ! 

- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अछोटी, जुलाई २०११)

No comments: