परमाणु विकसित होकर अविकसित परमाणुओं को पहचानने की योग्यता से संपन्न होता है। ऐसे परमाणु चैतन्य पद में होते हैं। यही विकास की महिमा है। इसी क्रम में चैतन्य प्रकृति अर्थात गठनपूर्णता प्राप्त परमाणु में पाँचों बल अक्षय रूप में समाहित रहते हैं। उसकी जागृति पूर्ण अभिव्यक्ति पर्यंत गुणात्मक विकास के लिए चैतन्य इकाई प्रवृत्त है।
नियंत्रण जड़-चैतन्यात्मक प्रकृति के लिए समान रूप में वर्तमान है। वर्तमान का तात्पर्य अस्तित्व सहित स्थिति और प्रभाव से है।
गठनपूर्णता प्राप्त परमाणु में ये विशेषताएं हैं कि वह अक्षय बल और अक्षय शक्ति संपन्न होता है। अक्षय बल और शक्ति सम्पन्नता का तात्पर्य यह है कि गठनपूर्णता के अनंतर परमाणु में अमरत्व सिद्ध होने के फलस्वरूप उसमे श्रम और गति दोनों अक्षय हो जाते हैं। यही स्वाभाविक स्थिति है। इसी सत्यता वश गठनपूर्ण परमाणु में अभिव्यक्त होने वाले पाँचों बल, पाँचों शक्तियां अक्षय होती हैं। अक्षयता का मतलब है - क्षय न होना, अर्थात अक्षुण्ण होना।
नियंत्रण जड़-चैतन्यात्मक प्रकृति के लिए समान रूप में वर्तमान है। वर्तमान का तात्पर्य अस्तित्व सहित स्थिति और प्रभाव से है।
गठनपूर्णता प्राप्त परमाणु में ये विशेषताएं हैं कि वह अक्षय बल और अक्षय शक्ति संपन्न होता है। अक्षय बल और शक्ति सम्पन्नता का तात्पर्य यह है कि गठनपूर्णता के अनंतर परमाणु में अमरत्व सिद्ध होने के फलस्वरूप उसमे श्रम और गति दोनों अक्षय हो जाते हैं। यही स्वाभाविक स्थिति है। इसी सत्यता वश गठनपूर्ण परमाणु में अभिव्यक्त होने वाले पाँचों बल, पाँचों शक्तियां अक्षय होती हैं। अक्षयता का मतलब है - क्षय न होना, अर्थात अक्षुण्ण होना।
2 comments:
Rakesh Bhai,
We can discuss this in our next meeting also.
"अक्षय बल और शक्ति सम्पन्नता का तात्पर्य यह है कि गठनपूर्णता के अनंतर परमाणु में अमरत्व सिद्ध होने के फलस्वरूप उसमे श्रम और गति दोनों अक्षय हो जाते हैं।"
I don't have complete clarity on this. Could you please explain this.
Regards,
Gopal.
Dear Gopal,
Shram = Vyavastha me hone ke liye cheshta. the initiative in a unit for becoming orderly.
Gati = Ek yathasthiti se doosree yathasthiti me parivartan. Change from one state of being to another state of being.
Parinam = Gathan. Constitution.
In the material nature, the constitution keeps changing. State of being is completely indicated by constitution (amount of matter and its arrangement). Therefore gati in material nature is about moving from one constitution to another constitution, while shram remains about becoming orderly in accordance to the state of being (constitution).
In conscious nature (or in jeevan), the constitution is become complete. And the shram, or initiative to be orderly, is there in the same way therefore. And gati is about moving from one conscious expression to another conscious expression. For example - having one thought, then another thought. This is distinct from material nature, where change in constitution changes the nature of gati and shram.
Let's discuss this in today evening's call.
Regards,
Rakesh..
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