कल्पनाशीलता द्वारा वस्तु की पहचान होने पर शब्द और कल्पना दोनों पीछे छूट जाते हैं, वस्तु रह जाती है। वस्तु का अनुभव होना स्वाभाविक हो जाता है। वस्तु का अनुभव होने पर हम प्रमाणित हो जाते हैं। प्रमाण संपन्न होने पर मानव प्रमाण का ही आवंटन करता है। जिसके पास जो होता है, उसी को वह आवंटित करता है।
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी 2007, अमरकंटक)
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी 2007, अमरकंटक)
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