भविष्य में जब मध्यस्थ-दर्शन सह-अस्तित्व-वाद की परंपरा स्थापित होती है, तो क्या वैदिक-विचार बना रहेगा या विलय हो जाएगा?
वैदिक-विचार में की गयी शुभ-कामना स्वीकार होगा। शुभ-कामना के अनुरूप जो शिक्षा मिलनी चाहिए, वह मिलेगा। इसमें किसको क्या तकलीफ है? शुभ को प्रमाणित करने का स्वरूप मध्यस्थ-दर्शन सह-अस्तित्व-वाद दिया है। यह किसी का विरोध नहीं है। विरोध करके हम आगे चल नहीं पायेंगे। मैंने किसी विरोधाभास को अपनाया नहीं है। यदि मेरी प्रस्तुति में कोई विरोधाभास है तो आप बताइये - मैं उसको ठीक कर दूंगा।
आदर्शवाद से हमे भाषा मिला। वे भी इसको "श्रुति" ही कहे हैं। भौतिकवाद से दूर-संचार मिला। ये दोनों (भाषा और दूर-संचार) मानव-जाति के लिए देन हैं - सटीक जीने के लिए। इनको परंपरा में बनाए रखने की आवश्यकता है।
भाषा जो हमे आदर्शवाद से मिला वह 'धातु' के आधार पर ध्वनित था। यहाँ मैंने ध्वनि के आधार पर परिभाषा दे दिया। इसकी आवश्यकता है या नहीं? - इसको आप विद्वान लोग सोचें!
आदर्शवाद से जो हमको प्रेरणा मिला, और भौतिकवाद से जो हमको प्रेरणा मिला - उसका विकल्प है यह! यह प्रस्ताव आदर्शवाद और भौतिकवाद के लक्ष्य से सम्बद्ध नहीं है। आदर्शवाद (रहस्यात्मक अध्यात्मवाद) में 'अस्तित्व-विहीन मोक्ष' के लक्ष्य की बात की गयी है। उससे मध्यस्थ-दर्शन के प्रस्ताव सम्बद्ध नहीं है। यहाँ 'अस्तित्व-पूर्ण मोक्ष' की बात है। क्या लक्ष्य चाहिए - आप ही सोच लो! हमको उससे कोई परेशानी नहीं है। 'अस्तित्व विहीन मोक्ष' चाहिए तो रहस्यात्मक अध्यात्मवाद के पास जाओ। आदर्शवाद रहस्य-मूलक होने से 'अस्तित्व-पूर्ण मोक्ष' को बता नहीं पाया। 'अस्तित्व विहीन मोक्ष' से मनुष्य संतुष्ट हो नहीं सकता। रहस्य विधि से अध्ययन हो नहीं सकता। रहस्य-विधि से हम शुभ-कामना ही व्यक्त कर सकते हैं। वही आदर्शवाद किया। रहस्य-विधि से हम प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सकते। शुभ-कामना व्यक्त करने मात्र से प्रमाण कहाँ हुआ?
आदर्शवाद में ज्ञान को सर्वोच्च बताया। ज्ञान क्या है? पूछा तो बताया - ब्रह्म ही ज्ञान है। ब्रह्म क्या है? -पूछा तो बताया - दृष्टा, दृश्य, दर्शन ये तीनो ब्रह्म ही हैं। कार्य, कारण, कर्ता - ये तीनो ब्रह्म ही हैं। यदि केवल ब्रह्म ही है - तो आप-हम क्यों बने हैं? किस प्रयोजन के लिए आपका नाम अलग है, मेरा नाम अलग है - सबका नाम 'ब्रह्म' ही क्यों नहीं हुआ? रहस्य से हम पार नहीं पाए। आप पार पाते हों, तो बताते रहना। आप रहस्य से पार नहीं पाओगे - यह मैं क्यों कहूं? इसीलिये अपनी बात को विकल्प रूप में प्रस्तुत किया।
प्रमाण को प्रस्तुत करने के लिए विकल्प दिया। इस विकल्प से किस ज्ञानी, किस विज्ञानी, किस अज्ञानी को तकलीफ है? प्रमाण चाहिए तो अध्ययन करके देखो! अध्ययन पूर्वक प्रमाण होता है तो आप उसको अपनाओगे, नहीं तो आप उसको अपनाओगे नहीं।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २०१०, अमरकंटक)
वैदिक-विचार में की गयी शुभ-कामना स्वीकार होगा। शुभ-कामना के अनुरूप जो शिक्षा मिलनी चाहिए, वह मिलेगा। इसमें किसको क्या तकलीफ है? शुभ को प्रमाणित करने का स्वरूप मध्यस्थ-दर्शन सह-अस्तित्व-वाद दिया है। यह किसी का विरोध नहीं है। विरोध करके हम आगे चल नहीं पायेंगे। मैंने किसी विरोधाभास को अपनाया नहीं है। यदि मेरी प्रस्तुति में कोई विरोधाभास है तो आप बताइये - मैं उसको ठीक कर दूंगा।
आदर्शवाद से हमे भाषा मिला। वे भी इसको "श्रुति" ही कहे हैं। भौतिकवाद से दूर-संचार मिला। ये दोनों (भाषा और दूर-संचार) मानव-जाति के लिए देन हैं - सटीक जीने के लिए। इनको परंपरा में बनाए रखने की आवश्यकता है।
भाषा जो हमे आदर्शवाद से मिला वह 'धातु' के आधार पर ध्वनित था। यहाँ मैंने ध्वनि के आधार पर परिभाषा दे दिया। इसकी आवश्यकता है या नहीं? - इसको आप विद्वान लोग सोचें!
आदर्शवाद से जो हमको प्रेरणा मिला, और भौतिकवाद से जो हमको प्रेरणा मिला - उसका विकल्प है यह! यह प्रस्ताव आदर्शवाद और भौतिकवाद के लक्ष्य से सम्बद्ध नहीं है। आदर्शवाद (रहस्यात्मक अध्यात्मवाद) में 'अस्तित्व-विहीन मोक्ष' के लक्ष्य की बात की गयी है। उससे मध्यस्थ-दर्शन के प्रस्ताव सम्बद्ध नहीं है। यहाँ 'अस्तित्व-पूर्ण मोक्ष' की बात है। क्या लक्ष्य चाहिए - आप ही सोच लो! हमको उससे कोई परेशानी नहीं है। 'अस्तित्व विहीन मोक्ष' चाहिए तो रहस्यात्मक अध्यात्मवाद के पास जाओ। आदर्शवाद रहस्य-मूलक होने से 'अस्तित्व-पूर्ण मोक्ष' को बता नहीं पाया। 'अस्तित्व विहीन मोक्ष' से मनुष्य संतुष्ट हो नहीं सकता। रहस्य विधि से अध्ययन हो नहीं सकता। रहस्य-विधि से हम शुभ-कामना ही व्यक्त कर सकते हैं। वही आदर्शवाद किया। रहस्य-विधि से हम प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सकते। शुभ-कामना व्यक्त करने मात्र से प्रमाण कहाँ हुआ?
आदर्शवाद में ज्ञान को सर्वोच्च बताया। ज्ञान क्या है? पूछा तो बताया - ब्रह्म ही ज्ञान है। ब्रह्म क्या है? -पूछा तो बताया - दृष्टा, दृश्य, दर्शन ये तीनो ब्रह्म ही हैं। कार्य, कारण, कर्ता - ये तीनो ब्रह्म ही हैं। यदि केवल ब्रह्म ही है - तो आप-हम क्यों बने हैं? किस प्रयोजन के लिए आपका नाम अलग है, मेरा नाम अलग है - सबका नाम 'ब्रह्म' ही क्यों नहीं हुआ? रहस्य से हम पार नहीं पाए। आप पार पाते हों, तो बताते रहना। आप रहस्य से पार नहीं पाओगे - यह मैं क्यों कहूं? इसीलिये अपनी बात को विकल्प रूप में प्रस्तुत किया।
प्रमाण को प्रस्तुत करने के लिए विकल्प दिया। इस विकल्प से किस ज्ञानी, किस विज्ञानी, किस अज्ञानी को तकलीफ है? प्रमाण चाहिए तो अध्ययन करके देखो! अध्ययन पूर्वक प्रमाण होता है तो आप उसको अपनाओगे, नहीं तो आप उसको अपनाओगे नहीं।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २०१०, अमरकंटक)
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