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Saturday, September 4, 2010

तदाकार-तद्रूप

अध्ययन पूर्वक हम हर वस्तु के साथ तदाकार-तद्रूप होते हैं। समझदारी के लिए तदाकार-तद्रूप होना है। प्रकृति की इकाइयों के साथ भी, और व्यापक के साथ भी तदाकार-तद्रूप होते हैं। आप हमारे बीच जो खाली स्थली है, वह अपने में एक रूप है - वही व्यापक-वस्तु है, इसके साथ तदाकार-तद्रूप होना है। सर्वत्र एक सा विद्यमान रहना ही व्यापकता का स्वरूप है।

तदाकार होना = 'वस्तु है' इसका विश्वास स्वयं में होना = साक्षात्कार = अध्ययन
तद्रूप होना = इस समझ के 'स्वत्व' हो जाने में विश्वास = अनुभव = जीने में प्रमाण

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जुलाई २०१०, अमरकंटक)

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