जड़-वस्तुओं को व्यापक-वस्तु ऊर्जा के रूप में प्राप्त है - जिससे वे क्रियाशील हैं। चैतन्य वस्तुओं को व्यापक वस्तु चेतना के रूप में प्राप्त है। चेतना ही ज्ञान है। चेतना-विधि से ही जीवन कार्य करता है। उसी प्रकार ऊर्जा-विधि से जड़-प्रकृति कार्य करता है, जिससे कार्य-ऊर्जा तैयार होता है।
मूल-ऊर्जा (व्यापक) साम्य रूप में सभी वस्तुओं के साथ बना हुआ है, यही अनुभव में आता है। रासायनिक-भौतिक वस्तुओं को व्यापक-वस्तु में भीगे होने से ऊर्जा प्राप्त है - यह अनुभव होना है। अनुभव के बिना यह आता नहीं है।
मानव में कल्पनाशीलता है, उसी की बदौलत तदाकार-तद्रूप विधि से प्रमाण होता है। कल्पना में प्रमाण होता नहीं है। अनुभव में प्रमाण होता है।
अनुमान गलत होगा तो फल-परिणाम भी गलत होगा। अनुमान सही है या नहीं है - इसका निर्णय फल-परिणाम के आधार पर ही है। फल-परिणाम है - 'अखंड-समाज सार्वभौम-व्यवस्था' होना। सह-अस्तित्व का मतलब ही है - मानव द्वारा 'अखंड समाज - सार्वभौम व्यवस्था' प्रमाणित होना, और जड़-प्रकृति में नियम-नियंत्रण-संतुलन प्रमाणित रहना। इन दोनों का दायित्व मानव पर ही है - क्योंकि मानव ज्ञान-अवस्था की इकाई है।
- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जुलाई २०१०, अमरकंटक)
मूल-ऊर्जा (व्यापक) साम्य रूप में सभी वस्तुओं के साथ बना हुआ है, यही अनुभव में आता है। रासायनिक-भौतिक वस्तुओं को व्यापक-वस्तु में भीगे होने से ऊर्जा प्राप्त है - यह अनुभव होना है। अनुभव के बिना यह आता नहीं है।
मानव में कल्पनाशीलता है, उसी की बदौलत तदाकार-तद्रूप विधि से प्रमाण होता है। कल्पना में प्रमाण होता नहीं है। अनुभव में प्रमाण होता है।
अनुमान गलत होगा तो फल-परिणाम भी गलत होगा। अनुमान सही है या नहीं है - इसका निर्णय फल-परिणाम के आधार पर ही है। फल-परिणाम है - 'अखंड-समाज सार्वभौम-व्यवस्था' होना। सह-अस्तित्व का मतलब ही है - मानव द्वारा 'अखंड समाज - सार्वभौम व्यवस्था' प्रमाणित होना, और जड़-प्रकृति में नियम-नियंत्रण-संतुलन प्रमाणित रहना। इन दोनों का दायित्व मानव पर ही है - क्योंकि मानव ज्ञान-अवस्था की इकाई है।
- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जुलाई २०१०, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment