पहला संक्रमण है - गठन-पूर्णता। जिससे चेतना को व्यक्त करने के लिए प्रकृति तैयार हो गया।
दूसरा संक्रमण है - मानव चेतना में संक्रमण। मानव-चेतना में संक्रमण के बाद स्वयं से गलती-अपराध होना समाप्त हो गया।
मानव-चेतना में उपकार की शुरुआत हुआ, देव-चेतना में उपकार और अधिक हो गया। दिव्य-चेतना में पूर्ण-उपकार हो गया, जो तीसरा संक्रमण है।
मानव-चेतना के लिए संक्रमण ही दुष्कर है। मानव-चेतना में संक्रमण होने के बाद कोई परेशानी नहीं है - फिर तो परंपरा है।
- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जुलाई २०१०, अमरकंटक)
दूसरा संक्रमण है - मानव चेतना में संक्रमण। मानव-चेतना में संक्रमण के बाद स्वयं से गलती-अपराध होना समाप्त हो गया।
मानव-चेतना में उपकार की शुरुआत हुआ, देव-चेतना में उपकार और अधिक हो गया। दिव्य-चेतना में पूर्ण-उपकार हो गया, जो तीसरा संक्रमण है।
मानव-चेतना के लिए संक्रमण ही दुष्कर है। मानव-चेतना में संक्रमण होने के बाद कोई परेशानी नहीं है - फिर तो परंपरा है।
- बाबा श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जुलाई २०१०, अमरकंटक)
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