प्रिय-हित-लाभ दृष्टियों से सच्चाई का विश्लेषण नहीं हो पाता. इस तरह जीव चेतना में बिना विश्लेषण किये संवेदनाओं की तृप्ति हेतु व्यक्ति दौड़ता है. विश्लेषण पूर्वक ही हम मूल्यों को स्वीकारते हैं. विश्लेषण के स्पष्ट अथवा सार रूप में मूल्य स्वीकृत होता है. मूल्यों को स्वीकारने पर मानव चेतना होता है. विश्लेषण पूर्वक मूल्यों का साक्षात्कार चित्त में होता है. उसके बाद बोध और अनुभव में वह पूरा होता है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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