प्रश्न: आप पूरी धरती पर सभी मानवों को समझदार बनाने की बात करते हैं, जबकि अभी अनुभव संपन्न व्यक्तियों की गिनती एक से आगे बढ़ी नहीं है. इसको आप कैसे देखते हैं?
उत्तर: इस तरह आपका कहना ज्यादती है. एक से अधिक लोग अभी सत्यापित नहीं किये हैं - ऐसा रखो! ज्यादा सम्मान इसी में है. अनुभव को घोषित करने में अनुभव से ज्यादा हिम्मत की ज़रूरत होती है. प्रमाणित करने के क्रम में ही अनुभव की घोषणा करने का हिम्मत बनता है. उसी क्रम में सब चल ही रहे हैं. पहले मेरी बात कोई सुनता नहीं रहा, फिर सुनने वाले बहुत लोग मिल गए, फिर सुनकर उत्साहित होने और सहमत होने वाले मिल गए. जितना किया उसके आधार पर यहाँ तक पहुंचे. इसके आगे का रास्ता खुला हुआ है. उस पर चल कर पहुंचेंगे.
प्रश्न: आपके दिखाए हुए इस रास्ते पर चलते हुए हमारे आपस में टकराहट न हो, इसके लिए क्या करें?
उत्तर: दूसरा जो कर रहा है, उसकी निंदा करने में मत जाओ. दूसरा जितना अच्छा किया उसको appreciate करके उससे ज्यादा अच्छा यदि आप प्रस्तुत करते हो तो उससे आपको कौन रोकता है? ठीक क्या है - वह रखो! फिर जरूरत पड़े तो कहना क्या ठीक नहीं है. ठीक क्या है - वो रखने के बाद सब अपना मूल्यांकन कर ही लेते हैं. अलग से क्या ठीक नहीं है, यह कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. कुल मिलाकर बात इतना ही है. यही तर्क सम्मत और निष्पक्ष आवाज है. इस तरह किसी के साथ मुठभेड़ वाला बात आता ही नहीं है.
प्रश्न: यह तो देखा है - जैसे ही हम अपने में किसी भी प्रकार का विरोध या शिकायत लाते हैं, हम अपना ही मार्ग अवरोध कर लेते हैं.
उत्तर: सच्ची बात है यह! उपनिषद वाक्य है यह!
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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