ब्रह्मवादी/आदर्शवादी सब कुछ भय और प्रलोभन के आधार पर ही बताये हैं. जितने भी आदर्शवादी शास्त्र और कथाएँ मिलते हैं - वे सब भय और प्रलोभन के आधार पर हैं. वे ये मान लिए हैं कि भय और प्रलोभन पूर्वक ही मानव को सच्चाई बोध होगा. सच्चाई के प्रति प्रलोभन होगा और झूठ के प्रति भय होगा तो आदमी सच्चाई की तरफ जाएगा - ऐसा सोचकर सब बात किया है. वह सफल नहीं हुआ. इस तरह कोई भी सच्चाई को वो बोध नहीं करा पाए. उससे इन्द्रिय सन्निकर्ष और विषयों की सीमा में जो होना था, वही हुआ.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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