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Monday, January 13, 2020

परम्परा की समीक्षा हो, न कि व्यक्ति की शिकायत

अपने मन में किसी भी तरह की शिकायत मत रखना.  शिकायत मुक्त होने पर ही हम पूरे हो पाते हैं - नहीं तो वह कहीं न कहीं प्रभाव डालता ही है.  जैसे ही हम अपने मन में किसी के प्रति विरोध लाते हैं हम अपना ही मार्ग अवरुद्ध कर लेते हैं.  शिकायत तो होना ही नहीं, परम्परा का समीक्षा होना है.  परम्परा की हम बात करेंगे.  भौतिकवादी परम्परा यह दिया, उससे यह सद्घटना और यह दुर्घटना हुआ.  आदर्शवादी परम्परा हमको यह दिया, उससे यह सद्घटना और यह दुर्घटना हुआ. 

परम्परा की समीक्षा करने में चूकना नहीं, व्यक्ति को शिकायत का आधार बनाना नहीं.

सभी व्यक्ति किसी न किसी परम्परा में डूबे ही हैं.  अलग से व्यक्ति को क्यों कटघरे में लायें?  परम्परा कहते हैं, तो उसमे सभी व्यक्ति आ गए.  यदि व्यक्तियों का नाम लेने बैठोगे तो कितने व्यक्तियों का नाम लोगे?

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)

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