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Monday, January 13, 2020

विश्लेषण के स्पष्ट अथवा सार रूप में मूल्य स्वीकृत होता है.


प्रश्न:  आपने कर्म दर्शन में लिखा है - "विश्लेषण के स्पष्ट अथवा सार रूप में मूल्य स्वीकृत होता है."  इसको और स्पष्ट कर दीजिये.

उत्तर:  हर व्यक्ति अपने मन में अपेक्षा के अनुसार आस्वादन करता है.  जीव चेतना में रुचि (संवेदनाओं की तृप्ति) के अनुसार आस्वादन होता है.  मानव चेतना में व्यवस्था (लक्ष्य व मूल्य) के अनुसार आस्वादन होता है.  व्यवस्था मानव के लिए इच्छित वस्तु है.  व्यवस्था के स्वरूप को अभी तक विश्लेषित करना नहीं बना था, अब बन गया है.  व्यवस्था का स्वरूप अब सूत्रित व्याख्यायित हो गया है.   स्वयं का भी विश्लेषण, जिसको पाना है उसका भी विश्लेषण। 

जीव चेतना में बिना विश्लेषण के संवेदनाओं की तृप्ति के लिए आदमी दौड़ रहा है.  जबकि विश्लेषण पूर्वक ही मूल्यों को स्वीकारना बनता है.  मूल्यों को स्वीकारना विश्लेषण के बिना नहीं होगा.  मूल्यों को स्वीकारने के फलस्वरूप मानव चेतना होगा.

मूल्यों की स्वीकृति चित्त में होती है - जो साक्षात्कार है.  वही बोध व अनुभव में जा कर पूरा होता है.

सात सम्बन्ध विश्लेषित होने के बाद ही मूल्यों के बारे में स्वीकृति होती है कि उनका निर्वाह होना ज़रूरी है.  मूल्यों की स्वीकृति होने के बाद स्वाभाविक रूप में उनका निर्वाह होता है.

विश्लेषण से पूर्व रूचि के अनुसार प्रिय-हित-लाभ की स्वीकृति रहती है.  विश्लेषण के बाद न्याय-धर्म-सत्य की स्वीकृति रहती है.

अभी तक की शिक्षा प्रिय-हित-लाभ के लिए भय और प्रलोभन के साथ ही पढ़ा रहा है.  आदर्शवादी भी जो कुछ बताये वह भय और प्रलोभन के आधार पर ही बताये.  वही भौतिकवादी शिक्षा में भी चल रहा है.  जितने भी आदर्शवादी शास्त्र और कथाएँ हैं वे भय और प्रलोभन के साथ हैं.  वे यह माने हुए हैं कि भय और प्रलोभन पूर्वक ही सच्चाई बोध होगी.  झूठ के प्रति भय और सच्चाई के प्रति प्रलोभन होने से आदमी सच्चाई की तरफ जाएगा - ऐसा वहां माना है.  जबकि उससे एक भी सच्चाई बोध नहीं हुआ.  इन्द्रिय संवेदनाओं और चार विषयों से आगे बढ़ नहीं पाए.

अब यहाँ कह रहे हैं - व्यवस्था के स्वरूप के विश्लेषण के सार रूप में मानव में मूल्य स्वीकृत होता है.

- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)

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