परमाणु में चुम्बकीयता बल सम्पन्नता स्वरूप में है. व्यापक वस्तु में भीगे रहने से चुम्बकीय बल अपने आप से आता है. चुम्बकीय बल संपन्न होने से ही दो परमाणु अंश मिल कर एक व्यवस्था को प्रमाणित करते हैं. एक दूसरे के साथ अच्छे निश्चित दूरी में होना और व्यवस्था को प्रमाणित करना.
साम्य ऊर्जा में भीगे रहने से प्रत्येक चुम्बकीय बल संपन्न है. वो कभी घटता-बढ़ता नहीं है. चुम्बकीय बल हर अवस्था में रहता है. वस्तु में परमाणुओं का संख्या बढ़ सकता है या कम हो सकता है - किन्तु वस्तु का चुम्बकीय बल घटता-बढ़ता नहीं है.
चुम्बकीय बल होने के आधार पर ही संगठित होना होता है. चुम्बकीयता के आधार पर ही सभी पदार्थ किसी न किसी अंश में विद्युत्-ग्राही होते हैं.
परमाणु में जो वर्तुलात्मक और घूर्णन गति है - उसके आधार पर शब्द (ध्वनि) भी प्रकट होता है, ताप भी प्रकट होता है, विद्युत् भी प्रकट होता है. गतिशीलता के आधार पर ये तीनो शक्तियां प्रकट हो जाती हैं.
गति हो पर ताप-ध्वनि-विद्युत् न हो - ऐसा हो नहीं सकता. गति न हो - ऐसा कोई वस्तु नहीं है. पत्थर जो रखा है, वह भी गतिशील है. उसके परमाण्विक स्वरूप में वह गतिशील है ही. अगली स्थिति को प्रकट करने के लिए जो ताप-ध्वनि-विद्युत् चाहिए - उस सब से संपन्न रहते ही हैं, तभी आगे की स्थिति प्रकट होती है. परमाणुओं के संगठित स्वरूप में यह धरती है, जो शून्याकर्षण में गतिशील बना रहता है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment