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Monday, April 29, 2019

प्रमाण की ही परंपरा होती है


मेरे गुरु जी (रमण मह्रिषी और आचार्य चंद्रशेखर भारती) ने मुझे कुछ कहा (साधना के लिए मार्गदर्शन दिया) - उस प्रभाव को मैंने स्वीकार कर लिया.  उस स्वीकृति के आधार पर (साधना पूर्वक) मैं प्रमाण-सिद्ध हो गया.  उसके बाद उनका प्रभाव कहाँ ख़त्म होगा?  यदि मैं प्रमाण-सिद्ध नहीं होता तो वह प्रभाव ख़त्म होता ही!  एक दूसरे के साथ होने वाली चीज़ है - प्रमाण.  प्रमाण की ही परंपरा होती है. 

जैसे - आपको मैंने कुछ समझाया, या आपने जो अध्ययन किया - यदि वह आपके जीवन में प्रमाणित हो गया तो वह अक्षय हो गया कि नहीं?  सदा के लिए हो गया तो अक्षय हो गया.  आप इसी को किसी दूसरे को समझा पाए - इस ढंग से परंपरा पूर्वक यह अक्षय होता है.  परंपरा में जो सकारात्मकता प्रवाहित होती है - वह अक्षय होती है.  नकारात्मकता कहीं न कहीं जा कर ख़त्म हो जाती है.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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