ANNOUNCEMENTS



Monday, April 15, 2019

क्रिया से क्रिया की तृप्ति संभव नहीं है

प्रश्न:  आपने मानव व्यव्हार दर्शन में लिखा है - "विषयासक्त मानव क्रिया से क्रिया की तृप्ति चाहता है, जो संभव नहीं है.  संवेदन क्रिया से ह्रास व विकास ही संभव है".  इसको समझाइये.

उत्तर:  जैसे - शरीर क्रिया (आहार, निद्रा, भय, मैथुन) से शरीर क्रिया की तृप्ति पाने का प्रयास करना.  वह संभव नहीं है.  तृप्ति मन में होती है - जो शरीर क्रिया से नहीं होती.  संवेदन क्रिया शरीर से सम्बद्ध है - जो जड़ है.  जड़ विकासक्रम में है.  तृप्ति विकास (जीवन जागृति) के साथ होती है - जो एषणात्रय स्वरूप में जीने से होता है, जहाँ संज्ञानीयता में संवेदनाएं नियंत्रित रहती हैं.

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)

No comments: