प्रश्न: आपने मानव व्यव्हार दर्शन में लिखा है - "विषयासक्त मानव क्रिया से क्रिया की तृप्ति चाहता है, जो संभव नहीं है. संवेदन क्रिया से ह्रास व विकास ही संभव है". इसको समझाइये.
उत्तर: जैसे - शरीर क्रिया (आहार, निद्रा, भय, मैथुन) से शरीर क्रिया की तृप्ति पाने का प्रयास करना. वह संभव नहीं है. तृप्ति मन में होती है - जो शरीर क्रिया से नहीं होती. संवेदन क्रिया शरीर से सम्बद्ध है - जो जड़ है. जड़ विकासक्रम में है. तृप्ति विकास (जीवन जागृति) के साथ होती है - जो एषणात्रय स्वरूप में जीने से होता है, जहाँ संज्ञानीयता में संवेदनाएं नियंत्रित रहती हैं.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
उत्तर: जैसे - शरीर क्रिया (आहार, निद्रा, भय, मैथुन) से शरीर क्रिया की तृप्ति पाने का प्रयास करना. वह संभव नहीं है. तृप्ति मन में होती है - जो शरीर क्रिया से नहीं होती. संवेदन क्रिया शरीर से सम्बद्ध है - जो जड़ है. जड़ विकासक्रम में है. तृप्ति विकास (जीवन जागृति) के साथ होती है - जो एषणात्रय स्वरूप में जीने से होता है, जहाँ संज्ञानीयता में संवेदनाएं नियंत्रित रहती हैं.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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