मध्यस्थ दर्शन के सह-अस्तित्ववादी प्रस्ताव से हमारे बुजुर्गों ने “ज्ञान” के लिए जो अपेक्षा व्यक्त किया है – वह भी पूरा होता है. दूसरे, विज्ञानियों ने “जीने की विधि” के लिए जो अपेक्षा व्यक्त किया है – वह भी पूरा होता है. विज्ञानियों को परमाणु में पांच कोशों (अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, आनंदमय कोष, विज्ञानमय कोष) की इस प्रकार से पहचान करा दें, परमाणु में स्थिरता और निश्चयता के स्वरूप को समझा दें - तो वे कैसे इसे नकारेंगे? आज की तारीख में हम नहीं कह सकते हैं, कि यह संयोग हो पायेगा या नहीं... लेकिन इतना तो निश्चित है, यदि किसी विज्ञानी ने इस बात को सूंघ लिया तो वह इसको छोडेगा नहीं! विज्ञान में “अस्थिरता-अनिश्चयता” के स्थान पर “स्थिरता-निश्चयता” का आना एक आधारभूत बदलाव होगा.
श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
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