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Wednesday, December 21, 2011

ज्ञान अनुक्रम से होता है.


सह-अस्तित्व अपने में अलग-अलग नहीं है.  केवल वस्तु हो, सत्ता न हो - ऐसा भी नहीं है.  केवल सत्ता हो, वस्तु न हो - ऐसा भी नहीं है.  वस्तु चार अवस्था में बताया.  यद्यपि सत्ता को भी "वस्तु" ही कहा है - क्योंकि उसकी वास्तविकता को बताया जा सकता है.  सत्ता की वास्तविकता है - पारगामीयता, पारदर्शीयता, और व्यापकता.  सत्ता सर्वत्र होने के रूप में बोध होता है.  इसी सत्ता में सम्पूर्ण पदार्थ-अवस्था, प्राण-अवस्था, जीव-अवस्था और ज्ञान-अवस्था की वस्तुएं डूबा हुआ, भीगा हुआ, और घिरा हुआ समझ में आता है.  भीगा हुआ समझ में आने से सभी वस्तुएं ऊर्जा-संपन्न और ज्ञान-संपन्न होने की बात समझ में आती है.

ऊर्जा-संपन्नता और ज्ञान-सम्पन्नता के बीच "संवेदनशीलता" होती है - जो शरीर को जीवन मानने से होती है या जीवन द्वारा शरीर के अनुसार चलने का स्वरूप है.  मानव का केवल शरीर की सीमा में ही जीना बनता नहीं है.  शरीर संबंधी वस्तुओं का ज्ञान आवश्यक हो जाता है.  वस्तुओं का यदि ज्ञान होने लगता है तो आगे स्वयं का भी ज्ञान होना चाहिए - इस जगह में आ जाते हैं.  स्वयं का ज्ञान करने जाते हैं तो शरीर और जीवन दोनों का ज्ञान होता है.  यह ज्ञान अनुक्रम से होता है.  पदार्थ-अवस्था से प्राण-अवस्था, प्राण-अवस्था से जीव-अवस्था, जीव-अवस्था से ज्ञान-अवस्था का प्रकट होना अनुक्रम है.  ज्ञान-अवस्था (मानव जाति) के प्रकट होने में पहले शरीर के अनुसार चलने की बात रही.  ज्ञान-अवस्था में अनुक्रम से ज्ञान होने पर व्यवस्था में जीना बनता है.

- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)

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