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Thursday, December 1, 2011

संयम काल में अध्ययन

प्रश्न: आपने संयम-काल में परमाणु का अध्ययन कैसे कर लिया?

उत्तर: वैसे ह़ी जैसे आप कागज़ से अध्ययन करते हो, वैसे ही मैंने प्रकृति में सीधे अध्ययन किया। अभी परमाणु को देखने के लिए, अणु को देखने के लिए, एक बैक्टेरिया को देखने के लिए आपको एक प्रयोगशाला चाहिए। इसके बिना आप देख नहीं पाते हैं। संयम की यही गरिमा है कि मैं उसको देख पाया। जितने भी हम विद्युत विधि से, विकिरण विधि से, और भी अन्य उपकरणो से देख पाते हैं, वह मानव की ताकत का आंशिक भाग है।

मानव अपनी सम्पूर्ण शक्तियो को कहीं भी लगा नहीं पाता है। मानव का अस्तित्व सहज विधि से 'होना' है, और अपनी मानसिकता के अनुसार 'रहना' है। मानसिकता के अनुसार ह़ी मानव ने सभी प्रयोगशाला को बनाया है। प्रयोगशाला विधि से मानव पूरी तरह नियोजित हुआ नहीं है, बचा ह़ी है। मानव की समग्रता समाधान में ह़ी व्यक्त होता है। बाकी सभी जगह मानव की क्षमता की आन्शिकता ह़ी व्यक्त होता है। उस आन्शिकता से मानव ने सार्थक-प्राप्तियां और निरर्थक-प्राप्तियां की हैं।  जैसे - दूर-संचार मानव-जाति द्वारा एक सार्थक-प्राप्ति है.  युद्ध-सामग्री एक निरर्थक-प्राप्ति है.  इन प्राप्तियो का लोकव्यापीकरण हुआ है. मानव ने इस तरह जो भी प्राप्ति की है, वह मनाकार को साकार करने के क्रम में हैं.  अब मनः स्वस्थता को लेकर संयम विधि से मैंने जो प्राप्त किया है, उसको शिक्षा विधि से पकडाने के लिए (लोकव्यापीकरण करने के लिए) हम घंटी बजा रहे हैं!

नाश होने की घंटी तो बज ह़ी रही है, अब बचने की भी घंटी बजाया जाए।

- श्री नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००६, अछोटी)

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