मानव अपनी इच्छा से ही भटकता है और अपनी इच्छा से ही सही मार्ग पर चल देता है.
अध्ययन के लिए आपकी इच्छा बहुत प्रबल होना आवश्यक है, तभी अध्ययन हो पाता है. अनुभव होता है - इस बारे में आश्वस्त होने की आवश्यकता है. अनुभव के बारे में आश्वस्त हो गए, और अध्ययन की इच्छा प्रबल हो गयी - तो वह प्रमाण तक पहुंचेगा ही. प्रमाण पर पहुँच गए तो वह परम है, उससे आदमी के हिलने वाली कोई जगह नहीं है. प्रमाण से ज्यादा महिमा किसी वस्तु की नहीं है.
तुलन साक्षात्कार की पृष्ठ-भूमि है. प्रमाणित होने की अपेक्षा में हम तुलन करते हैं, तो साक्षात्कार होता है. यह अपने में देखने की बात है. किताब यहाँ से पीछे छूट गया. प्रमाणित होने की अपेक्षा नहीं है तो साक्षात्कार होगा नहीं. "हम अध्ययन करेंगे, बाद में प्रमाणित होने के बारे में सोचेंगे!" या "हम अनुभव करेंगे बाद में प्रमाणित होने का सोचेंगे!" - यह सब शेखी समाप्त हो जाती है. अनुभव होने के पहले प्रमाणित होने की इच्छा के बिना हमे साक्षात्कार ही नहीं होगा. आगे बढ़ने के मार्ग में यह बहुत बड़ा रोड़ा है. हमारी इच्छा ही नहीं है तो हमारी गति कैसे होगा? प्रमाणित होने की अपेक्षा या इच्छा के साथ तुलन करने पर साक्षात्कार होता ही है. साक्षात्कार होता है तो बोध होता ही है. बोध होता है तो अनुभव होता ही है. अनुभव होता है तो प्रमाण होता ही है. प्रमाणित होने की आवश्यकता के आधार पर ही अध्ययन होता है.
अध्ययन की परिभाषा ही है - अनुभव की रोशनी में स्मरण सहित किया गया सभी प्रयास अध्ययन है. अनुभव की रोशनी से आशय है - प्रमाणित होने की आवश्यकता. अध्ययन होता है तभी साक्षात्कार होता है. साक्षात्कार होता है तो फिर रुकता नहीं है. इसको अच्छी तरह समझने की ज़रुरत है. अभी आदमी जहां अटका है, वहां से उद्धार होने का रास्ता है, यहाँ से!
- श्री नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
अध्ययन के लिए आपकी इच्छा बहुत प्रबल होना आवश्यक है, तभी अध्ययन हो पाता है. अनुभव होता है - इस बारे में आश्वस्त होने की आवश्यकता है. अनुभव के बारे में आश्वस्त हो गए, और अध्ययन की इच्छा प्रबल हो गयी - तो वह प्रमाण तक पहुंचेगा ही. प्रमाण पर पहुँच गए तो वह परम है, उससे आदमी के हिलने वाली कोई जगह नहीं है. प्रमाण से ज्यादा महिमा किसी वस्तु की नहीं है.
तुलन साक्षात्कार की पृष्ठ-भूमि है. प्रमाणित होने की अपेक्षा में हम तुलन करते हैं, तो साक्षात्कार होता है. यह अपने में देखने की बात है. किताब यहाँ से पीछे छूट गया. प्रमाणित होने की अपेक्षा नहीं है तो साक्षात्कार होगा नहीं. "हम अध्ययन करेंगे, बाद में प्रमाणित होने के बारे में सोचेंगे!" या "हम अनुभव करेंगे बाद में प्रमाणित होने का सोचेंगे!" - यह सब शेखी समाप्त हो जाती है. अनुभव होने के पहले प्रमाणित होने की इच्छा के बिना हमे साक्षात्कार ही नहीं होगा. आगे बढ़ने के मार्ग में यह बहुत बड़ा रोड़ा है. हमारी इच्छा ही नहीं है तो हमारी गति कैसे होगा? प्रमाणित होने की अपेक्षा या इच्छा के साथ तुलन करने पर साक्षात्कार होता ही है. साक्षात्कार होता है तो बोध होता ही है. बोध होता है तो अनुभव होता ही है. अनुभव होता है तो प्रमाण होता ही है. प्रमाणित होने की आवश्यकता के आधार पर ही अध्ययन होता है.
अध्ययन की परिभाषा ही है - अनुभव की रोशनी में स्मरण सहित किया गया सभी प्रयास अध्ययन है. अनुभव की रोशनी से आशय है - प्रमाणित होने की आवश्यकता. अध्ययन होता है तभी साक्षात्कार होता है. साक्षात्कार होता है तो फिर रुकता नहीं है. इसको अच्छी तरह समझने की ज़रुरत है. अभी आदमी जहां अटका है, वहां से उद्धार होने का रास्ता है, यहाँ से!
- श्री नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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