ज्ञानार्जन करने में सभी स्वतन्त्र हैं। ज्ञानार्जन करने के बाद शुभ-कार्य में प्रवृत्त होना, प्रमाणित होना - यह वेतन-भोगिता के साथ संभव नहीं है। वेतन-भोगिता विधि से आदमी उपकार नहीं कर सकता। समाधान-समृद्धि पूर्वक जीना ही वेतन-भोगिता विधि और व्यापार-विधि के अभिशाप से मुक्त होने का उपाय है। कुछ लोगों में इस अभिशाप से मुक्त होने का माद्दा तत्काल है, कुछ में नहीं है। जिनके पास माद्दा है, वे बाकियों का सहयोग करें - यही निकलता है।
जीने के तरीके में परिवर्तन समझने के बाद ही होता है। समझने का अधिकार हर किसी के पास है। चाहे चोर हो, डाकू हो - सभी समझ सकते हैं।
"सभी समझ सकते हैं!" - इसी आधार पर हम इस प्रस्ताव का लोकव्यापीकरण कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २००९, अमरकंटक)
जीने के तरीके में परिवर्तन समझने के बाद ही होता है। समझने का अधिकार हर किसी के पास है। चाहे चोर हो, डाकू हो - सभी समझ सकते हैं।
"सभी समझ सकते हैं!" - इसी आधार पर हम इस प्रस्ताव का लोकव्यापीकरण कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २००९, अमरकंटक)
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