जागृति पूर्वक हर मानव के जीने का स्वरूप बनता है - "समाधान समृद्धि"।
समाधान में ज्यादा-कम की गुंजाइश नहीं है। समाधान ज्यादा-कम होने पर, या मनमानी होने पर समानता का आधार ही नहीं बनता। समाधान के लिए ज्ञान ही है। ज्ञान को कोई आधा-पौना किया नहीं जा सकता। सभी में ज्ञान स्वीकृत होने पर, सब में समाधान प्रमाणित होने पर ही "समानता" का आधार बनता है।
समृद्धि में ज्यादा-कम की गुंजाइश है। दो परिवारों में समृद्धि की मात्रा में भेद हो सकता है। किसी परिवार को कम मात्रा में समृद्धि का अनुभव होता है, किसी को ज्यादा मात्रा में समृद्धि का अनुभव होता है। समृद्धि का अनुभव होना आवश्यक है। समृद्धि की मात्रा का निर्णय परिवार की आवश्यकता के अनुसार है। समृद्धि के लिए उत्पादन आवश्यक है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००९, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment