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Friday, December 4, 2009

अध्ययन के लिए ध्यान देना होता है.

अध्ययन के लिए ध्यान देना होता है। इस विकल्पात्मक प्रस्ताव के अध्ययन से ही मैं "सब कुछ" पा सकता हूँ - उसको "केंद्रीय ध्यान" कहा। केंद्रीय-ध्यान में अध्ययन पूर्ण होता है।

हम यदि स्वीकारे रहते हैं की हमारे पास पहले से ही कुछ "समझ" है, और उस "समझ" के आधार पर हमको कुछ चाहिए, तीसरे - इस "समझ" से हमे कुछ करना है - तो वह इस विकल्पात्मक प्रस्ताव के स्वीकार होने में बाधक होता है। इन तीनो पर निषेध लगाते हैं, या नकार देते हैं, तो इस प्रस्ताव के अध्ययन के लिए ध्यान लगता है। यह "अवैध" को अवैध स्वीकारने की बात है। यह "निषेध" को निषेध स्वीकारने की बात है। इस तरह अवैध पर निषेध लगाने पर हमारा मन "वैध" के अध्ययन के लिए तैयार हो जाता है। अवैध पर निषेध के साथ अपनी ईमानदारी को खोजने की आवश्यकता है।

प्रश्न: अध्ययन-काल में मन और वृत्ति की क्या स्थिति होती है?

उत्तर: अध्ययन से अनुभव की सम्भावना उदय हो जाती है। जिससे मन और वृत्ति में पहले उत्साह, फ़िर उत्सव!

प्रश्न: अध्ययन-काल में अपनी पूर्व-स्मृतियों की क्या स्थिति रहती है?

उत्तर: पूर्व-स्मृतियाँ प्राथमिकता में नीचे रहते हैं।

प्रश्न: क्या ध्यान के लिए जो परम्परा-गत अभ्यास-विधियाँ बताई गयी हैं, उनसे अध्ययन में कोई मदद मिलती है?

उत्तर: अध्ययन ही अभ्यास है। आँखें मूँद लेना कोई ध्यान देना नहीं है। परम्परा-गत अभ्यास-विधियों का मध्यस्थ-दर्शन के अध्ययन से कोई लेना-देना नहीं है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २००९, अमरकंटक)

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