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Saturday, May 23, 2009

आंशिक-ध्यान और केंद्रीय-ध्यान

अध्ययन के लिए ध्यान देने की आवश्यकता है।

अध्ययन के पहले पठन है। पठन के लिए भी ध्यान देने की ज़रूरत है। मनुष्य का मन एक ही साथ तीन आयामों में काम कर सकता है। जैसे - बोलना, सुनना, और देखना, ये तीनो काम मन एक साथ कर सकता है। यदि तीनो आयाम (देखना, सुनना, बोलना) जब सह-अस्तित्व प्रस्ताव के अर्थ में हो जाते हैं - तो मन स्थिर हो जाता है। यह "आंशिक ध्यान" है। आंशिक-ध्यान पूर्वक पठन करना होता है। यह मन की चंचलता को हटाने का उपाय है। इसको आप आज करना चाहें तो आज कर सकते हैं, कल करना चाहें तो कल, अगले जन्म में करना चाहें तो अगले जन्म में कर सकते हैं।

मनुष्य-जीवन की विचार-शक्ति भी तीन आयामों में काम करता रहता है। विचार का स्वरूप है - मुझे कुछ चाहिए, मुझे कुछ करना है, और मेरे पास कुछ है। इस धरती के सारे ७०० करोड़ आदमियों की विचार-प्रक्रिया इन तीन आयामों में ही है। इन तीन आयामों के अलावा आदमी के पास विचारने को और कुछ भी नहीं है। आप अपने में इसको जांच सकते हैं।

अपने विचार के इन तीनो आयामों पर निषेध लगाने से "केंद्रीय ध्यान" होता है। निषेध लगाने का मतलब - न मुझे कुछ चाहिए, न मुझे कुछ करना है, न मेरे पास कुछ है। यही समाधि या "केंद्रीय-ध्यान" है। समाधि में मेरे साथ यही हुआ था। केंद्रीय-ध्यान की स्थिति में काफी समय तक रहा जा सकता है।

केंद्रीय-ध्यान का अभ्यास करने से पूर्व-स्मृतियाँ शिथिल हो जाती हैं। पूर्व-परिकल्पनाएं बंद हो जाती हैं। शरीर-संवेदनाएं और सारी आशा-विचार-इच्छाएं चुप हो जाती हैं। इस ध्यान का अभ्यास करने से अनुभव सुलभ हो जाता है, या नज़दीक हो जाता है। अनुभव-पूर्वक क्या विचार होना है - यह अभ्यास उसके लिए जगह बनाता है। यह कोई उपदेश नहीं है। आपके ऊपर लादने वाली बात नहीं है। आपकी इच्छा पर इसे छोड़ा है। केंद्रीय-ध्यान करने में यदि हम पारंगत हो जाते हैं, तो हम जो अध्ययन करना चाहते हैं - वह तुंरत समझ में आ जाता है। "केंद्रीय-ध्यान में अध्ययन पूर्ण होता है।" इसको परीक्षण किया जा सकता है। आप यदि स्वयं के प्रति ईमानदार हैं तो इसे अभी हासिल किया जा सकता है। इसमें कुछ असाध्य नहीं है।

प्रश्न: अध्ययन-विधि में आपने बताया था, समाधि bypass हो जाती है - फ़िर यह अभ्यास किस लिए?

उत्तर: यदि यह अभ्यास करते हैं, तो अध्ययन के लिए अर्हता जल्दी बन जाती है। यह करना कोई मुश्किल भी नहीं है। ऐसा नहीं है - कोई १०, २०, ५० वर्ष साधना करने की ज़रूरत हो। निषेधनी के साथ ईमानदार होते हैं, तो उसी समय समाधि है। उसी को मैंने "केंद्रीय-ध्यान" नाम दिया है। समाधि के बाद ही मैंने संयम-काल में अध्ययन किया, फलतः अस्तित्व में अनुभव किया। जल्दी यदि समझना है तो आप समाधि को देख लीजिये।

प्रश्न: यह तो आप कुछ नयी बात कह रहे हैं, जो पहले आपने नहीं कही?

उत्तर: आज यह आपके साथ चर्चा में आ गयी, तो मैंने कहा। मेरा यह विश्वास है, हर व्यक्ति समझने योग्य है। यदि पठन में अड़चन लगती है - तो "आंशिक ध्यान" का अभ्यास कर लिया जाए। यदि समझने में अड़चन लगती है - तो "केंद्रीय-ध्यान" या विचार-शून्यता का अभ्यास कर लिया जाए। अध्ययन के लिए यह ध्यान करने का अभ्यास करने की "आवश्यकता" है - यह मैं नहीं कह रहा हूँ। यह करना या नहीं करना तो आपका स्वयं का निर्णय है।

सह-अस्तित्व में अध्ययन मनुष्य की "मूल आवश्यकता" है। उसको छोड़ कर इधर-उधर भागने से थकने के अलावा क्या होगा? कुंठा के अलावा क्या होगा? निराशा के अलावा क्या होगा?

सह-अस्तित्व में अध्ययन के फलस्वरूप अनुभव होता है। फ़िर अनुभव-मूलक विधि से मानव-चेतना को प्रमाणित करने की बात होती है। अनुभव-मूलक विधि के अलावा मानवीयता को प्रमाणित करने की और कोई विधि नहीं है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)

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