कोई भी क्रिया की प्रतिक्रिया में ह्रास होता है या विकास होता है. जैसे - ठंडी होने की प्रतिक्रिया में हम कुछ करते हैं. किसी के भाषा द्वारा कुछ कहने की प्रतिक्रिया में हम कुछ करते हैं. किसी किताब में कुछ पढ़ कर उस सोच की प्रतिक्रिया में हम कुछ करते हैं. इस तरह, अपने में हुई प्रतिक्रिया के आधार पर कुछ भी किया जाता है तो वह पुनः क्रिया ही होगा. लेकिन अनुभव मूलक गुणों का जब प्रभाव पड़ता है तो उसके आधार पर हमारे विचारों में निश्चयन होता है. विचारों में निश्चयन होने के आधार पर अनुभव परिपाक होता है. क्रिया के उपक्रम की परिणिति को "परिपाक" कहा है. जैसे - खेत को जोता, उसमे धान लगाया, उसको सींचा, सुरक्षा किया - फिर एक दिन धान पक के तैयार हो गया. वह तैयार हो जाना परिपाक है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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