अब दो ही रास्ते हैं आदमी के पास - समझदारी या मजामारी. मजामारी में सभी अपराध वैध हैं. समझदारी में वैध बात अलग है, अवैध बात अलग है. जैसे - गुड़ और गोबर. गुड़ एक अलग चीज़ है, गोबर एक अलग चीज़ है. इसमें मानव के मन पर एक प्रहार भी है, एक सुझाव भी है. विगत से जुड़ी हुई सूत्रों पर प्रहार है, भविष्य में सुधरने के लिए प्रस्ताव है. जैसा बने,वैसा करो अब!
प्रश्न: आप हर समय यह भ्रम और जाग्रति का विश्लेषण क्यों करते हैं?
उत्तर: अभी संक्रमित होने के लिए, परिवर्तित होने के लिए इस विश्लेषण को करने की आवश्यकता है. जैसे - लाभ समझ में आने के लिए हानि समझ में आना भी आवश्यक है. हानि किसमें है यह स्पष्ट किये बिना आप लाभ को बता ही नहीं सकते.
इस तरह भ्रम और जाग्रति का नीर-क्षीर विश्लेषण किया. अब सर्वेक्षण में आया कि हर मानव जाग्रति को चाहता है. लेकिन अभी मानव जहाँ है, उसको अपने मन की जाग्रति चाहिए! वो होता नहीं है. इसीलिये जीव-चेतना और मानव-चेतना के बीच की लक्ष्मण-रेखा को स्पष्ट कर दिया. मानव चेतना में मानव समझदारी से जीता है. जीव चेतना में सकल अपराध को समझदारी मानता है. भ्रमित मानव में जागृत होने की अपेक्षा है, उस अपेक्षा को पूरा करने के लिए तमीज चाहिए. उस तमीज के लिए यह प्रस्ताव है. यह पर्याप्त है या नहीं उसको पहले जांचो, उसके बाद बात करो!
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment