प्रत्येक एक की परस्परता में जो खाली स्थली है - वही व्यापक वस्तु है. दो आदमी के बीच, दो झाड के बीच, दो जानवर के बीच, दो फलों के बीच, दो परमाणुओं के बीच - हर परस्परता में दूरियाँ बनी रहती है. जैसे - हमारी आँख, कान, नाक इनके बीच भी दूरियाँ बनी रहती हैं. जैसे - हमारी आँख, कान, नाक के बीच भी दूरियाँ बनी रहती हैं, सम्बन्ध बना रहता है. हमारा आँख अलग दिखता है, हाथ अलग दिखता है, मूंह अलग दिखता है - किन्तु इन सभी में सम्बन्ध बना रहता है. जैसे - एक शरीर के सभी अंग-अवयवों में सम्बन्ध है, वैसे ही एक व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति में सम्बन्ध है. सम्बन्ध में निश्चित दूरियाँ हैं ही. यह दूरी स्वयं में सत्ता है. इससे डूबे रहने, घिरे रहने का स्वरूप स्पष्ट होता है.
अब सत्ता में भीगे रहने को समझने की बात है. इसके लिए बताया - सत्ता में भीगे रहने से जड़ प्रकृति ऊर्जा-संपन्न है, चैतन्य प्रकृति चेतना संपन्न और ज्ञान संपन्न है. जड़ भीगा रहता है - इसलिए ऊर्जा. चैतन्य भीगा रहता है - इसलिए चेतना. इस ढंग से व्यापक वस्तु में एक-एक वस्तु अविभाज्य होना पता चलता है. अविभाज्यता स्वयं में सहअस्तित्व का सूत्र है. सहअस्तित्व सूत्र अविभाज्यता ही है.
इस तरह सम्पूर्ण के साथ हमारा सम्बन्ध भी पता चलता है, सम्पूर्ण के साथ हमारा ज्ञान भी पता चलता है, सम्पूर्ण के साथ कर्तव्य भी पता चलता है, सम्पूर्ण के साथ नियम-नियंत्रण-संतुलन पूर्वक जीना भी पता चलता है, सम्पूर्ण के साथ समाधानित होना बनता है, सम्पूर्ण के साथ न्याय-धर्म-सत्य प्रमाणित करना बनता है. यह कुल मिला कर चेतना और ज्ञान का मतलब है.
यह सब बातों को समझ के, आदमी स्वयम में विचार करके जैसे जीना है, वैसे जियेगा. समझाते तक हम संकल्पित हैं, जीना हर व्यक्ति का स्वतंत्रता है. नासमझी से आदमी सभी गलती करता है. समझदारी से सभी सही करता है. आदमी का कुंडली ही ऐसा है! समझदारी को सर्वमानव चाहता ही है. किसी आयु के बाद सभी अपने को समझदार मानते ही हैं. ये दो बातें सर्वेक्षण में आता है. हर मानव समझदारी को चाहता है तो समझदारी के लिए रास्ता बनाया जाए. उसके लिए शिक्षा में समझदारी का समावेश किया जाए - यह निकला. उसके लिए हम प्रयासरत हैं.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ सम्वाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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