कान्ति अनुभव प्रकाश ही है. जीवन में अनुभव प्रकाश ही कान्ति स्वरूप में काम करता है. अनुभव का प्रतिबिम्बन बुद्धि पर, बुद्धि से चित्त पर, चित्त से वृत्ति पर, वृत्ति से मन पर, मन से व्यवहार पर होता है. यही अनुभव प्रकाश और कान्ति का मतलब है.
प्रश्न: आपने जो लिखा है, "जीवन प्रकाश में सम्पूर्ण रूप दिखते हैं." - इससे क्या आशय है?
उत्तर: अनुभव प्रकाश में जब जीवन प्रकाशित होता है, उस प्रकाश में यह पता चलता है कि प्रत्येक वस्तु प्रकाशमान है. अभी के विज्ञान के अनुसार बाहरी प्रकाश से (जैसे सूर्य के प्रकाश से) वस्तुएं प्रकाशित हैं. ईश्वरवादियों के अनुसार, ईश्वरीय इच्छा से सब प्रकाशित है, यह बताया. यहाँ कह रहे हैं - सबमे प्रकाशमानता है, यह जीवन जाग्रति सहज प्रकाश से स्पष्ट होता है. ज्ञानगोचर विधि यही है.
प्रश्न: 'कान्ति' की परावर्तन क्रिया को 'रूप' कहने का क्या आशय है?
उत्तर: कान्ति का परावर्तन पहले रूप पर होता है, फिर गुण पर, फिर स्वभाव पर, फिर धर्म पर होता है. हरेक इकाई में रूप-गुण-स्वभाव-धर्म अविभाज्य होता है, इसीलिये कान्ति की परावर्तन क्रिया को 'रूप' कह दिया.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
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