समझदारी के प्रस्ताव की जांच जीने में ही होती है. जिए बिना जांचने में मज़ा तो आता है, पर समझ नहीं आता! जीने में जांचने में गंभीरता से सोचना बनता है. जीने में जांचने से समझदारी को पूरा करने में आपको देरी नहीं लगेगी.
जीने में जांचने के लिए स्वावलंबन का डिजाईन चाहिए, और उसके अनुसार lifestyle बदलने की बात जुड़ी है. यह करने में आपको कोई संकट न हो, इसको आप अच्छे से सुनिश्चित करो. किसी को संकटग्रस्त बनाने का हमारा इरादा नहीं है. स्वयंस्वीकृत विधि से, स्वयंस्फूर्त विधि से ही हम पार पा सकते हैं.
साधना के लिए हर हालत को झेलने के लिए मेरी मानसिक तैयारी थी, इसलिए हमको संकट हुआ ही नहीं. हालात परास्त हो गए, पर हम परास्त नहीं हुए. ऐसे सबकुछ झेल जाने का यह मनोबल सभी में तैयार हो जाएगा, इस पर मेरा विश्वास नहीं है. किसी में भी वह साहस नहीं होगा - ऐसा मैं नहीं कहता हूँ. पर सबमे ऐसा साहस नहीं है. मैं जितना झेला, उतना सबको झेलना पड़े तो वह common model भी नहीं होगा.
छोड़ने-पकड़ने की बात मैं नहीं कर रहा हूँ. समझने की बात कर रहा हूँ. समझने के बाद छोड़ना-पकड़ना आप स्वयं तय करो. समझाने के लिए मैं तैयार बैठा हूँ. मैं जब साधना के लिए निकला तो यह आश्वासन मेरे पास नहीं था. भक्ति-विरक्ति विधि में जो पास है, सबको लुटाकर आगे बढ़ने की बात होती है. अब इस अनुसन्धान को अपना स्वत्व बनाने के लिए सब कुछ लुटा कर बढ़ने की बात नहीं है. जो हम प्राप्त किये हैं, उसको सदुपयोग में लगा कर बढ़ते हैं, फिर थोडा सा परिश्रम से जीना बन जाता है. इतने को हर व्यक्ति कर सकता है. समाधान-समृद्धि पूर्वक जी कर अपनी उपयोगिता सिद्ध करना - लक्ष्य वही है. इसमें छोड़ने-पकड़ने की बात नहीं है. सदुपयोग से शुरू करते हैं, श्रम से उपार्जन तक पहुँचते हैं.
-श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment