तीसरे सोपान (ग्राम) में शिक्षा संस्कार
शिक्षा-संस्कार की मूल वस्तु अक्षर आरंभ से
चलकर सहअस्तित्व दर्शन, जीवन ज्ञान सम्पन्न होने तक क्रमिक शिक्षा पद्धति रहेगी। हर गाँव में प्राथमिक
शिक्षा का प्रावधान बना ही रहेगा। गाँव के हर नर-नारी समझदार होने के आधार पर
स्वयं स्फूर्त विधि से प्राथमिक शिक्षा को सभी शिशुओ में अन्तस्थ करने का कार्य
कोई भी कर पायेंगे। इस विधि से प्राथमिक शिक्षा के कार्य के लिए कोई अलग से वेतन
या मानदेय की आवश्यकता नहीं रहती है। गाँव के हर नर-नारी शिक्षित करने का अधिकार
सम्पन्न होगें।
दूसरे विधि से हर गाँव में प्राथमिक शिक्षा
शाला के साथ हर अध्यापक के लिए एक निवास साथ में ग्राम शिल्प का एक कार्यशाला, हर अध्यापक के लिए 5-5 एकड़ की जमीन और 5-5 गाय की व्यवस्था रहेगी यह पूरे गाँव के संयोजन से सम्पन्न होगा। यह शाला, अभिभावक विद्याशाला के रूप में कार्यरत रहेगी। इस दोनो विधि से शिक्षा-संस्कार
कार्य को पूरे गॉव में उज्जवल बनाने का कार्यक्रम सम्पन्न होगा। मानवीय शिक्षा
मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्व वाद पर आधारित रहेगी। शिक्षा सहअस्तित्व दर्शन जीवन ज्ञान के रूप में
प्रतिपादित होगी। इस प्रकार हम एक अच्छी स्थिति को पायेंगे। जिससे सहअस्तित्ववादी
मानसिकता बचपन से ही स्थापित होने की व्यवस्था रहेगी।
(अध्याय:7, पेज नंबर:113-114)
चौथे सोपान में शिक्षा संस्कार (ग्राम समूह
परिवार सभा, ग्राम के लिए शिक्षा)
इसमें दस गाँव के लिए शिक्षा संस्था रहेगी।
पहले की तरह से दो विधियों से इसे क्रियान्वयन करना बन जाता है। स्वायत्त परिवार
में से विद्वान नर नारी को भागीदारी करने का अवसर बना रहेगा। इसमें सामर्थ्यता की
पहचान है। पढ़ाई लिखाई रहेगी समझदारी भी रहेगी और प्रतिभा की छ: महिमाएँ प्रमाणित
रहेगी। ऐसे कोई भी व्यक्ति के किये स्वयं स्फूर्त विधि से शिक्षा संस्था में उपकार
के मानसिकता से कार्य करने के लिए अवसर रहेगा। दूसरे विधि से हर दस गाँव से अर्थात
1000-1000 परिवार के श्रम सहयोग से अथवा योगदान से अभिभावक
विद्याशाला बनी रहेगी।
इस विद्या शाला में दस गाँव से विद्यार्थियों
को पहँुचने के गतिशील साधन को ग्राम समूह
सभा बनाए रखेगा। इन साधनो का उपार्जन 1000 परिवार के योगदान से बना
रहेगा। हर परिवार उपने श्रम नियोजन के फलस्वरूप उपार्जित किये (धन) गये में से
प्रस्तुत किये गये अंशदान के फलस्वरूप विद्यालय सभी प्रकार से सम्पन्न हो पाता है।
इसी ग्राम समूह परिवार से संचालित शिक्षा संस्थान में जो भागीदारी करते हैं यह
अध्यापक, विद्वान, संस्कार कार्यों को, समारोहो को, उत्सवो को सम्पादित करने का कार्य करेंगे। जैसे
जन्म उत्सव, नामकरण उत्सव, अक्षराभ्यास उत्सव, विवाह उत्सव आदि संस्कार कार्यो को
सम्पन्न करायेंगे। जहाँ स्वतंत्र उत्सव, मूल्यांकन उत्सव, कार्यक्रम उत्सव को ग्राम परिवार सभा, ग्राम समूह परिवार सभा
संचालित करेंगे। हर उत्सव में विद्यार्थियों और अध्यापको के प्रेरणादायी वक्तव्यों
को प्रस्तुत करायेंगे। प्रेरणा का आधार समझदार होने, समझदारी के अनुसार
ईमानदारी, ईमानदारी के अनुसार जिम्मेदारी रहेगी।
जिम्मेदारी के अनुसार भागीदारी रहेगी। इसी मंतव्य को व्यक्त करने के लिए साहित्य
का प्रस्तुतिकरण रहेगा। स्वास्थ्य संयम प्रेरणादायी प्रस्तुतियाँ स्वागतीय रहेगी।
शोध अनुसंधान का स्वागत और मूल्यांकन करता
रहेगा। (अध्याय:7, पेज नंबर:117-118)
पांचवे सोपान (ग्राम क्षेत्र) में शिक्षा
संस्कार
इसकी भी प्रथम कड़ी शिक्षा-संस्कार कार्यक्रम
है। इन शिक्षा संस्कार कार्यो में यथावत एक विद्यालय रहेगा। इसके पहले की सीढ़ी में
जो प्रौद्योगिकी बनी रहती है उसके योगदान पर उत्तर माध्यमिक शालाएँ और स्नातक
शालाएँ क्रम विधि से कार्य करेगी। क्रम विधि का तात्पर्य हर इन्सान चाहे नारी हो, नर हो समझदार होने के लिए कार्य करेगा। समझदारी का किसी उँचाई इस क्षेत्र
परिवार सभा के अन्तर्गत प्रमाणित होना स्वाभाविक है। ऐसे प्रमाण के लिए तमाम
व्यक्ति प्रशिक्षित रहेंगे। इसी कारणवश स्नातक पूर्व और स्नातक विद्यालय किसी क्षेत्र
सभा के अन्तर्गत संचालित रहेंगे। जिसमें मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद की रोशनी में
ज्ञान, विज्ञान, विवेक सम्पन्न विधि से हर विद्यार्थी की
मानसिकता में स्थापित करने का कार्य होगा।. (अध्याय:7, पेज नंबर:119)
छठवें सोपान (मंडल) में शिक्षा संस्कार
शिक्षा-संस्कार कार्य स्नातक व स्नातकोत्तर रूप
में प्रभावित रहेगी। स्नातकोत्तर
शिक्षा-संस्कार में जीवन ज्ञान सहअस्तित्व दर्शन में पारंगत बनाने की व्यवस्था
रहेगी। इसी के साथ साथ अखंड समाज सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी का सम्पूर्ण
तकनीकी विज्ञान विवेक कर्माभ्यास सम्पन्न कराना बना रहता है। ऐसी संस्था में
कार्यरत सारे अध्यापक संस्कार कार्यो के लिए जहाँ-जहाँ जरूरत पड़े वहाँ-वहाँ
पहुँचेगे और कार्य सम्पन्न कराने के दायी रहेंगे। उत्सव सभा मूल्याँकन प्रक्रिया
सब ग्राम सभा सम्पन्न करेगी।
(अध्याय:7, पेज नंबर:120)
सातवें सोपान (मंडल समूह) में शिक्षा संस्कार
सभी प्रकार के कार्यकलापो को तथा पांचों कड़ियो
के कार्यक्रमों को इस सातवीं सोपान में प्रमाणित करने का दायित्व रहेगा इसमें
सम्पूर्ण मानव प्रयोजनो को स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया जाना कार्यक्रम रहेगा।
ऐसे मानव अधिकार परिवार सभा से ही प्रमाणरूप
में वैभवित होते हुए शनै: शनै: पुष्ट होते हुए मंडल समूह परिवार सभा में मानव
अधिकार का सम्पूर्ण वैभव स्पष्ट होने की व्यवस्था रहेगी। समान्यत: मानव अर्थात
समझदार मानव शनै: शनै: दायित्व के साथ अपनी अर्हता की विशालता को प्रमाणित करता ही
जाता है। अपनी पहचान का आधार होना हर व्यक्ति
पहचाने ही रहता है। समूचे अनुबंध समझदारी से व्यवस्था तक को प्रमाणित करने
तक जुड़ा ही रहता है। प्रबंधन इन्हीं तथ्यो में, से, के लिए होना स्वाभाविक है। समझदारी में परिपक्व व्यक्तियों का समावेश मंडल
समूह सभा में होना स्वाभाविक है। ऐसे देव मानव दिव्य मानवता को प्रमाणित करते हुए
दृढ़ता सम्पन्न विधि से शिक्षा विधा में शिक्षा-संस्कार कार्य को सम्पादित करते है।
शिक्षा-संस्कार एक प्रथम कड़ी है इसमें अति
सूक्ष्मतम अध्ययन, शोध प्रबंधो को तैयार करने की व्यवस्था रहेगी।
शोध प्रबंधो का मूल उद्देश्य मानवीय संस्कृति, सभ्यता, विधि व्यवस्था को और मधुरिम सुलभ करना ही रहेगा। इसके लिए सारी सुविधाएँ
जुटाने का कार्यक्रम मंडल समूह सभा बनाये रखेगा। इसका प्रबंधन मंडल सभा के जितने
भी प्रौद्योगीकी रहेगी उसकी समृद्घि के आधार पर व्यवस्थित रहेगा। ऐसी व्यवस्था के
तहत में और विशाल विशालतम रूप में व्यवस्था सूत्रोंं को सुगम बनाने का उपाय
सदा-सदा शोध विधि से व्यवस्थापन रहेगा। ऐसे शोध कार्यो के लिए सामग्री में सातो
सीढ़ियों की गतिविधियाँ रहेगी इस प्रकार
शोध प्रबंधन का स्रोत बनी रहेगी। ऐसे शोध प्रबंधन स्वाभाविक रूप में दसो सीढ़ी और
पाँचों कड़ियो की समग्रता के साथ नजरिया बना रहेगा। इस विधि से मंडल समूह सभा की
प्रथम कड़ी का लोक उपकारी और मानव उपकारी होने के रूप में प्रमाणित रहेगी।(अध्याय:7, पेज नंबर:121-122)
आठवें सोपान (मुख्य राज्य) में शिक्षा संस्कार
आठवीं सोपान में मुख्य राज्य सभा होगी। जिसके
लिए मंडल समूह सभा से एक एक निर्वाचित सदस्य रहेंगे। जिनके आधार पर समूचे
कार्यकलाप सम्पन्न होगे। जिसमें पहली कड़ी शिक्षा-संस्कार कार्य की गतिविधियों में
सर्वोत्कृष्ट समाज गति, सर्वोत्कृष्ट उत्पादन कार्य, सर्वोत्कृष्ट न्याय-सुरक्षा कार्य, सर्वोत्कृष्ट उत्पादन
कार्य, सर्वोत्कृष्ट विनिमय कार्य गति और सर्वोत्कृष्ट
स्वास्थ्य-संयम का शोध संयुक्त रूप में होता रहेगा। ये सभी सोपानीय परिवार सभाओं
के लिए प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत होती रहेगी। इस विधि से अपनी गरिमा सम्पन्न
शिक्षण कार्य, कर्माभ्यास पूर्ण कार्यक्रम को सम्पन्न करता
रहेगा।(अध्याय:7, पेज नंबर:123-124)
नवें सोपान (प्रधान राज्य) में शिक्षा संस्कार
इस सभा की पहली कड़ी शिक्षा-संस्कार ही रहेगी।
प्रधान राज्य परिवार सभा से संचालित शिक्षा समूचे दसो मुख्य राज्यों की संस्कृति, सभ्यता, विधि व्यवस्था की सार्थकता और समग्र व्यवस्था
की सार्थकता के आँकलन पर आधारित श्रेष्ठता और श्रेष्ठता के लिए अनुसंधान, शोध, शिक्षण, प्रशिक्षण, कर्माभ्यासपूर्वक रहेगी। प्रौद्योगिकी विधा का कर्माभ्यास प्रधान रहेगा।
व्यवहार अभ्यास प्रक्रिया में प्रमाणीकरण प्रधान रहेगा। इस प्रकार यह उन सभी
जनप्रतिनिधियो के लिए प्रेरणादायी शिक्षा व्यवस्था रहेगी और लोकव्यापीकरण करने के
नजरिये से चित्रित करने की प्रवृत्ति रहेगी। इसी मानवीय शिक्षा कार्यक्रम में
साहित्य कला की श्रेष्ठता के संबंध में प्रयोजन के अर्थ में मूल्यांकन रहेगी। श्रेष्ठता प्रबंध, निबंध, कला प्रदर्शन, साहित्य, मूर्ति कला, चित्रकलाओं के आधार पर मूल्यांकन और सम्मान
करने की व्यवस्था रहेगी। (अध्याय:, पेज नंबर:124-125)
दसवें सोपान (मुख्य राज्य) में शिक्षा संस्कार
इस सभा की पहली कड़ी शिक्षा संस्कार कार्य
रहेगी। शिक्षा संस्कार कार्य में प्राकृतिक संतुलन, (उद्योंग वन व खनिज) जीव
संतुलन, मानव न्याय संतुलन का कार्य सम्पादित होगा। साथ
में जलवायु संतुलन, ऋतु संतुलन, धरती का संतुलन, वन खनिज का संतुलन सम्बंधी अध्ययन करने की व्यवस्था रहेगी। ऐसे अध्ययन के लिए
किसी भी सोपानीय सभा के सीमा में किसी भी व्यक्ति को भेज सकते हैं विद्वान बना
सकते हैं और लोकव्यापीकरण के लिए प्रावधानित कर सकते है। (अध्याय:7, पेज नंबर:126)
स्त्रोत: व्यवहारात्मक जनवाद (अध्याय:7, संस्करण:2009, मुद्रण- 2017)
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