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Saturday, October 15, 2016

निष्कर्ष


 
 
  • अध्ययन विधि से जागृत होना सबके वश का है.  दूसरा विधि साधना-संयम है, जिसको करना सबके वश का नहीं है.  सबके वश की जो बात न हो वह "विशेष" होगा ही.  विशेष छाती का पीपल होगा ही! 
  • स्वयं प्रमाणित स्वरूप में जिए बिना अध्ययन कराने जाएंगे तो आपकी बात को कोई मानने वाला नहीं है.  विद्यार्थी को वही संतुष्ट कर पायेगा को अनुभव मूलक विधि से जीता हो और अध्ययन कराता हो. 
  • व्यापक वस्तु में सम्पूर्ण जड़-चैतन्य वस्तु को क्रिया करता हुआ, एक दूसरे के साथ उपयोगिता-पूरकता विधि से रहता हुआ मैंने अनुभव किया।  व्यवस्था के रूप में भी मानव-परस्परता में पूरकता-उपयोगिता तय हो जाता है.  इस तरह सह-अस्तित्व मानव परस्परता में समाधान स्वरूप में प्रमाणित होता है.  समाधान पूर्वक मानव धरती पर सदा-सदा जी सकते हैं.  मानव समस्या-ग्रस्त रहते तक धरती को परेशान करेगा ही. 
  • नियति का मानव को यही सन्देश है - "सुधर जाओ, नहीं तो मिट जाओ!"  तीसरा कोई रास्ता नहीं है.
  • सही तरीके से हम जो कुछ भी करते हैं, उसका प्रभाव विशाल होता है.  भ्रम पूर्वक हम कुछ भी करें, उसका प्रभाव संकीर्ण होता है. 
  • भय और प्रलोभन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.  प्रलोभन है तो भय है ही.  भय है तो प्रलोभन है ही.  भयभीत मानव आश्वासन का प्रलोभन चाहने लगता है.  प्रलोभन में डूबा मानव भय से पीड़ित होने लगता है.  यह भय और प्रलोभनवादी कार्यक्रम आदमी करता क्यों है?  सुख-शान्ति पूर्वक जीने के लिए.  
 
एक व्यक्ति के प्रयोग से यह धरती नहीं सुधरेगी, इसमें पूरी मानव जाति  को भागीदारी करनी पड़ेगी।  इसका क्रम निम्न प्रकार से रहेगा:
 
पहले, अपराध प्रवृत्ति से मुक्ति 
 
दूसरे, अपराध कार्यों से मुक्ति 
 
उसके बाद तीसरे, प्रदूषण को कम करने के लिए ऊर्जा-संतुलन के प्रयास।  अपराधिक विधि से ऊर्जा प्राप्त करने के तरीकों को बंद करना और वैकल्पिक विधि से ऊर्जा प्राप्त करने के तरीकों को स्थापित करना।  यदि यह हो पाता है तो अनुभव मूलक विधि से जीने का प्रयोजन सिद्ध होगा।
 
 
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
 
 

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